सोमवार, 5 नवंबर 2012

कवि की चिंता

    सदी का सबसे बड़ा कवि चिंतित था
    गाँव   को शहर में बदलता देख
और शहर को धीरे - धीरे मरता देख /

वह चिंतित था
कुछ सवालों से
जो आये दिन
उसकी पेशानी  पर
यकायक उभर आते थे
चैनलों की  बाढ़  में उसे
अपना देश जुगाली करता  दिखता  /

उसके सपनों में आते
बुजुर्गियत  ओढ़े   बच्चे  ,
नंगी औरतें ,
आधुनिकता  को ढोल की तरह
लटकाए युवा
और वह आम आदमी भी
जो गाँधी की टोपी की मानिंद
इधर से उधर उछाला जा रहा था  /

आम आदमी का मुहावरा
कवि  के चेहरे को नमकीन बना रहा था /
इस मुहावरे  के जरिए  वह दाखिल हो रहा था
एक  ऐसी तिलस्मी  दुनिया में
जहाँ पुरस्कारों के लिए
उसकी पीढ़ी  के कवि
कोरस में मर्सिया पढ़ रहे थे /







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