शनिवार, 25 जनवरी 2014

उदासी की शामें बड़ी लंबी हो रही हैं .....

उदासी की  वह  शाम बड़ी लंबी थी
जब सागर अपनी लहरों को रेत
पर धीमे से छोड़ आया था ....../
आकाश  भी एक सिरे पर
थोड़ा अनमना - सा
मुँह लटकाए
कोई पुरानी कहानी  पढ़ रहा था
और
चाँद अभी गुम सुम - सा बैठा
किसी क़िस्से की आस लिए
मेरे इंतजार में था ...../

मैं अभी -अभी लौटा था
उस  पृथ्वी से मिलकर
जो बरसों से किसी की
तलाश में
अपनी ही  धुन में
समय की परिक्रमा कर रही  थी 
और समय ....
 जाने किस मोड़ पर
मुड़कर
इतिहास के गलियारों में
बेचैन आत्माओं  की  तरह
भटक रहा था   /

मैं भी भटकता रहा
उस  सुख के कतरे के लिए
जो कपूर की तरह
मेरी हथेलियों से उड़ गया था /

अब मेरी झोली में
 कोई किस्सा था
  किसी के नाम कोई चिट्ठी
और  कोई उम्मीद की  लोरी /

 बन्जारे  की तरह
 कंधों पर मैं 
अपना दुख लादे
 आज सागरआकाशचाँद ,   पृथ्वी और समय  से
 विदा ले रहा हूँ
क्यूँ कि
उदासी  की शामें
आज कल बड़ी लंबी हो रही हैं /