मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

शायद कोई आने वाला है .........

     एक    मुट्ठी  भर  रंग

       फ़ेंक कर सूरज

   दूर कहीं छिपकर

   सोने चला  गया

    उस रंग से
आसमान ने अपना  चूनर
     रंग लिया
और वह चूनर
ओढ़ संध्या  धीरे - धीरे
उतर आई धरती के आँगन में

वृक्षों की  फुनगियों ने
सिर हिलाकर स्वागत किया
और लगी गाने मंगल गान
उस गान में डूब गई
दिन भर की थकान /

तभी दूर कहीं झिलमिलाने लगा
सपनों का संसार
तारे उग आये
चाँद आसमान के उस कोने में खड़ा
मुस्कुराने लगा /

 शायद कोई आने वाला है .........
चुपके से कान में
लजाती हुई हवा कह गई ....

१८.१०.11

बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

आडवाणी के रथयात्रा के मायने

  आडवाणी जी रथयात्रा पर निकल चुके हैं / पर सोचनेवाली बात यह है कि इससे बीजेपी को कितना  फायदा  होगा / वैसे भी बीजेपी के पास कोई मजबूत अजेंडा नहीं है /वह देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी तो है पर उसकी भूमिका उतनी दमदार नहीं है / इस पार्टी में कोई ऐसा नेता नहीं है जिसे सर्वसम्मति से सब स्वीकार कर सके / आडवाणी जी खुद अपने आपको कभी-कभार  प्रधानमंत्री के रूप में  प्रोमोट करते रहते हैं पर अक्सर उनके इस  प्रोमोशंन पर हल्ला मचता रहता है / इस दौड़ में मोदी भी दौड़ रहे हैं तो गडकरी भी लगे हाथ इसमें शामिल हो जा रहे हैं /   आडवाणी जी रथयात्रा के पीछे अपनी और अपनी पार्टी की यह मंशा बता रहे हैं कि इससे भ्रष्टाचार  को खतम करने में मदद मिलेगी और जनता  कांग्रेस के खिलाफ लामबंद होगी /  पर इस रथयात्रा से कोई फरक नहीं पड़ने वाला है / हाँ , बीजेपी के कार्यकर्ताओं में एक जोश जागेगा / 

सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

 नदी को याद  करती हुई    कविताओं में सबसे बेहतर कविता


       हम अगर यहाँ न होते आज तो
            कहाँ होते , ताप्ती ?
     होते कहीं किसी नदी - पार  के गांव के
        किसी पुराने कुएं में
    डूबे होते किसी बहुत पुराने पीतल के
        लोटे की तरह
जिस पर कभी - कभी धूप भी आती
और हमारे ऊपर किसी का भी नाम लिखा होता /

या फिर होते हम कहीं भी
किसी भी तरह से साथ- साथ रह लेते
दो ढेलों की तरह हर बारिश में घुलते
हर दोपहर गरमाते /--   उदयप्रकाश

मीडिया इरोम शर्मीला के अनशन के प्रति उदासीन क्यों ?

 मीडिया की भूमिका  कभी -कभी बड़ी चौकानेवाली होती है / अभी हाल ही में मीडिया ने जिस तरीके से अन्ना हजारे के अनशन को लाईम   लाइट में रखा उससे एक बात तो  सिद्ध होती है कि मीडिया जिसे चाहे  उसे  जब चाहे हवा दे सकती है और उसके पक्ष में हवा बना भी सकती है /. अन्ना के  अनशन को  मीडिया ने ऐसा कवर किया  कि लगा  कि अब तो कोई क्रांति होकर ही रहेगी / लोगों के सर पर अनशन का जादू चला / लोग भ्रष्टाचार को ख़तम करने के लिये कमर कसने का अभिनय करने लगे / दोस्तों , इस अभिनय से कुछ होने वाला नहीं है / अभी  देखिये  अन्ना की यह मुहिम   आंधी बनती है या पानी का बुलबुला ? अन्ना की बात करते  समय हम उस औरत को भूल जाते हैं जो पिछले   दस सालों से भूख हड़ताल पर है/  वह भी अनशन ही कर रही है/ मणिपुर की सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मीला  सशस्त्र बल  विशेषाधिकार अधिनियम  को हटाने की मांग में वह अनशन पर बैठी हुई है पर हमारी बुद्धिमान और सजग मीडिया के पास वक्त  नहीं है कि वह जाकर इस मुद्दे को लाइम- लाइट में लाये / असल में मीडिया भी उन्हीं मुद्दों को पकड़ती है जो सनसनाहट पैदा करती हैं/ यानी जो बिक सकता है खबरों के बाज़ार में वही मीडिया को पसंद आता है /  अभी अन्ना का बाज़ार भाव  ज्यादा  है / इसीलिये अन्ना अभी  समाचारों में बने रहेंगे /  

मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

कांग्रेस की परेशानी

 कांग्रेस की परेशानी अब दिनों दिन बढती जा रही है /   एकाध सालों में कांग्रेस के नेता जिस तरीके से कांग्रेस की नैया चला रहे हैं उससे तो साफ़ पता चल रहा है कि पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों  में इनकी नाव  डूबने  वाली है /  जिस तरीके से कांग्रेस के नेता भ्रष्टाचार पर स्टैंड लेते रहे हैं वह उनकी पार्टी के   लिये  शुभ नहीं है /  अब देखिये  अन्ना हजारे के अनशन वाले मुद्दे को कांग्रेस के नेताओं  ने कैसे हलके ढंग से लिया और कांग्रेस की  भद पिट  गई /  कांग्रेस की सरकार की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि उसका मुखिया एक  ईमानदार  छवि वाला व्यक्ति है पर उसका उसके बेईमान सिपहसालारों पर कोई वश नहीं है /  सब भ्रष्टाचार की फसल काटने में अपनी भूमिका निभा चुके हैं /  उनके जो  युवराज हैं , जिन्हें भावी प्रधानमंत्री का  ओहदा मिलनेवाला है वे अभी भारतीय  राजनीति का ककहरा सीख  रहे हैं / ऐसी बात नहीं है कि वे राजनीति में बिलकुल  अनाडी हैं बल्कि राजनीति तो उन्हें विरासत में मिली है पर उन्हें अभी बहुत कुछ सीखना है /

अब कल अन्ना ने एक नया अल्टीमेटम कांग्रेस को पकड़ा दिया है   कि बिल नहीं तो वोट नहीं / उन्होनें साफ़ साफ़ कह दिया है कि अगर  जन लोक पाल  विधेयक नहीं लाये तो चुनाव में कांग्रेस का विरोध करेंगे / कांग्रेस की आफत यह है कि अभी  आम जनता  भी कांग्रेस से थोडा रुष्ट है  क्योंकी  बढती हुई महंगाई ने उसकी कमर तोड़ दी है और वह देख रही है कि सरकार इस महंगाई को काबू में लाने  के लिये  कोई खास कदम नहीं उठा रही है/  ऊपर से उसके मंत्रियों के  बयान आग में घी का काम कर रहे हैं / अभी गरीबी की जो सीमा -रेखा  तय की गई है सरकार के द्वारा उससे सरकार की  अच्छी खासी फजीहत हुई है /  कांग्रेस की आलाकमान को अब जागना ही पड़ेगा नहीं तो कांग्रेस की   लुटिया कांग्रेस के नेता ही डूबा देंगे /