विजयदेव नारायण साही की अंतिम काव्य कृति " साखी " की अंतिम कविता " प्रार्थना : गुरु कबीरदास के लिए " से कुछ पंक्तियां ---
दो तो ऐसी निरीहता दो
कि इस दहाड़ते आतंक के बीच
फटकार कर सच बोल सकूँ
और इसकी चिंता न हो
कि इस बहुमुखी युद्ध में
मेरे सच का इस्तेमाल
कौन अपने पक्ष में करेगा ?
.................
यह भी न दो
तो इतना ही दो
कि बिना मरे चुप रह सकूँ /
दो तो ऐसी निरीहता दो
कि इस दहाड़ते आतंक के बीच
फटकार कर सच बोल सकूँ
और इसकी चिंता न हो
कि इस बहुमुखी युद्ध में
मेरे सच का इस्तेमाल
कौन अपने पक्ष में करेगा ?
.................
यह भी न दो
तो इतना ही दो
कि बिना मरे चुप रह सकूँ /