शनिवार, 24 नवंबर 2012

ओ मेरे देश !

सुनते हो , ओ मेरे देश , सुनो
तुमसे कहती हूँ
मैं तुम्हें प्यार करना चाहती हूँ
महसूस करना चाहती हूँ तुम्हारे दर्द को /
कुछ छिपाना मत मुझसे
जानती हूँ
बहुत व्यथित हो तुम/
तुम्हारे रहनुमाओं  ने
तुम्हें हाशिए पर फ़ेंक दिया है /
तुम दुखी हो
अपनी  उन संतानों   से
जो तुमसे प्यार करना
आउट  ऑफ फैशन मानती हैं /

तुम याद करते हो रात- दिन
उनको जो ग्रीन कार्ड पाकर
भूल चुके हैं तुम्हें /

क्या कहा ?
याद करते हैं वे भी तुम्हें
 हाँ- हाँ , याद आया
पन्द्रह  अगस्त को शायद या
छब्बीस जनवरी को/

ओ मेरे देश , सच -सच बतलाना
वे याद करते हैं या तुम /

क्या हुआ मेरे दोस्त ???
तुम्हारी आँखें नम हैं
चिंतित हो
उन भेड़ियों के झुण्ड  से
जो तुम्हें लूट रहे हैं /
डरे हुए हो
उन चेहरों से
जो तुम्हें तुम्हारी ही भुजाओं से
अलग करना चाह रहे हैं  /
उदास हो
ऐसी नस्ल से
जिसने अभी तक तुमसे प्यार करना ही नहीं सिखा /


मत उदास हो , ओ मेरे देश
उम्मीद रख मेरे वतन।।।।
सरफरोशी की तमन्ना
अभी भी कुछ दिलों में है /







बुधवार, 21 नवंबर 2012



                         घोड़े बेचकर सॊना



लॊग कहते हैं मैं घॊड़े बेचकर सॊता हूं
पर मैं घॊड़े पर सवार हॊकर
नींद की दुनिया में दाखिल हॊता हूं/
जहां पुरखॊं का खेत
हरिया रहा हॊता है
गांव की सरजू नदी
कॊई पुराना बिसरा राग अलाप रही हॊती है
मठिया का महुआ का पेड़
गम गम कर महक रहा हॊता है
और वह ठ्कूरी बाबा का मंदिर
कनैल फूलॊं और अगरबत्तियॊं की
सुगंध में झूम रहा हॊता है/

मेरी नींद की दुनिया में
गांव के खेत , नदी,महुआ का पेड़,ठ्कूरी बाबा का मंदिर-
सब वहां खेत में ढेलॊं की तरह रहते हैं
बारिश में प्रेमी जोड़ॊं की तरह भींगते  हुए
गरमी में सूरज की तरह तपते हुए
और सरदी में बॊरसी की आग लिये
आजी की तरह कांपते हुए/

मेरे घॊड़े लगातार दौड़े जा रहे हैं
अब शहर की सीमा में वे दाखिल हॊ चुके हैं
जहां शॊर मचा हुआ है
हर आदमी भीड़ में तब्दील हॊ चुका है
लॊग भागे जा रहे हैं या
भगाये जा रहे हैं
इस शॊर में , इस भागमभाग  में
मेरी आत्मीयता बुरादे की तरह झड़ रही है
मेरा चेहरा कहीं निकलकर
दूर जा गिर पड़ा है/
शहर, जॊ कभी संभावना  के सपने पालता था
आज वहां एक औरत सिसक रही है
पूछ्ने पर बताती है
शहर अब इतिहास की तरह
मर चुका है/

मेरी नींद मुझे झकझॊरती है
मन चुपचाप सॊया हुआ है
डरता है कहीं गांव
उससे  छिन न जाये/
पुरखॊं का खेत, सरजू नदी, महुआ का पेड़, ठ्कूरी बाबा का मंदिर-
इन्हें ही तॊ वह बचाना चाहता है
अपनी स्मतियॊं में/
वह नहीं चाहता कि
वह घॊड़े बेचकर सॊए/           

















बुधवार, 14 नवंबर 2012

मेरे पिता





        जब  आकाश अंधड़ से घिरा था
मेरे पिता, तुम रोशनी  की तलाश में
एक दिया जला रहे थे /


सोया था मैं अपनी ही नींद में
जगे थे तुम सारी - सारी  रातें
मेरे हिस्से का सपना
तुमने अपनी आँखों में पाला  था /

चाँद पर जाना था मुझे
तारों को मुट्ठी  में लेना था
आसमान में  सूराखें करनी थीं मुझे
और मेरे पिता , तुम श्रम के बीहड़ जंगल में
लोहा पीट रहे थे
खदान में उतर रहे थे /

सुरमई दुनिया में दाखिल था मैं
और मेरे पिता , तुम अपने कन्धों पर
पृथ्वी का बोझ उठाये
दृष्टि से ओझल हो रहे थे /

समय से अनुरोध

          अशोक  वाजपे यी   की एक कविता से कुछ दिनों का विश्राम   लेना     चाहती हूँ /




समय , मुझे       सिखाओ

कैसे भर जाता है घाव ? - पर
एक  अदृश्य  फाँस  दुखती रहती है
जीवन - भर /

समय, मुझे बताओ
कैसे जब सब भूल चुके होंगे
रोजमर्रा  के जीवन व्यापर में
मैं याद रख सकूँ
और दूसरों से बेहतर न महसूस करूँ /

समय, मुझे सुझाओ
कैसे   मैं अपनी रौशनी  बचाए रखूं
तेल चुक जाने के बाद भी
ताकि वह लड़का
 उधार  ली महँगी किताब एक रात में ही पूरी पढ़ सके /

समय, मुझे सुनाओ वह कहानी
जब व्यर्थ   पड़  चुके हों शब्द ,
अस्वीकार किया  जा चूका हो सच,
और बाकी  न बची हो जूझने की शक्ति
तब भी किसी ने छोड़ा न हो प्रेम
तजी न हो आसक्ति ,
झुठलाया न हो अपना मोह /

समय, सुनाओ  उसकी गाथा
जो अंत तक बिना झुके
बिना  गिड गिड़ाय  या   लड़  खड़ा ए ,
बिना थके और हारे , बिना संगी - साथी ,
बिना अपनी यातना को सबके लिए  गाए ,
अपने अंत की ओर चला गया /

समय , अँधेरे में हाथ थमने ,
सुनसान में गुनगुनाहट  भरने ,
सहारा देने , धीरज  बंधाने ,
अडिग रहने , साथ चलने और लड़ने का
कोई भुला - बिसरा पुराना गीत  तुम्हें याद हो
 तो समय , गाओ
ताकि यह समय ,
यह अँधेरा ,
यह  भारी
यह असह्य समय कटे /   

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

 दोस्तों  आज  हिंदी के महत्वपूर्ण  कवि  धूमिल की एक कविता " किस्सा जनतंत्र का" को आपसे साझा कर रही हूँ /

करछुल -
बटलोही से बतियाती है और चिमटा
तवे से मचलता है
चूल्हा कुछ नहीं बोलता
चुपचाप जलता है और जलता रहता है /

औरत
गवें  गवें  उठती है - गगरी में
हाथ डालती है
फिर एक पोटली खोलती है /
उसे कठवत में झाड़ती है /
लेकिन कठवत का पेट भरता ही नहीं
पतरमुही ( पैठान तक नहीं छोड़ती )
सरर फरर बोलती है और बोलती रहती है /

बच्चे आँगन में -
आँगड़ बांगड़  खेलते हैं /
घोडा - हाथी  खेलते हैं
चोर -साव  खेलते हैं
राजा - रानी खेलते हैं और खेलते रहते हैं
चौके में खोई हुई औरत के हाथ
कुछ  भी नहीं देखते
वे केवल रोटी  बेलते हैं और बेलते रहते हैं
एक छोटा - सा जोड़ भाग
गश्त खाती हुई आग के साथ - साथ
चलता है और चलता रहता

बडकू को एक
छोटकू को  आधा
परबत्ती  बाल किशनु  आधे में आधा
कुल रोटी  छै
और तभी  मुँह दुब्बर
दरबे में आता है - खाना तैयार है ?
उसके आगे  थाली आती है
कुल रोटी तीन
खाने से पहले  मुँह दुब्बर
पेट भर
पानी पिता है और लजाता है
कुल रोटी ती न
पहले उसे थाली खाती है
फिर  वह रोटी खता है /

और अब-
पौने दस बजे हैं -
कमरे की हर चीज
एक रटी हुई  रोजमर्रा धुन
दुहराने लगती है
वक्त घडी से निकलकर
अंगुली पर आ जाता है और जूता
पैरों में , एक दन्त टूटी  कंघी
बालों में गाने लगती है
दो आँखें दरवाजा खोलती हैं
दो बच्चे टाटा कहते हैं
एक फटेहाल कलफ कालर -
टांगों में अकड़  भरता है
और खटर - पटर एक  ढढढ़ा  साईकिल
लगभग भागते हुए चेहरे के साथ
दफ्तर  जाने लगती है
सहसा चौरस्ते पर जली लाल बत्ती जब
एक दर्द हौले से  हिरदै को हल गया
' ऐसी क्या हड़बड़ी कि जल्दी में पत्नी को
चूमना
देखो, फिर भूल गया /'







ढोला - मारू की अधूरी कथा

आइये दोस्तों , आज ढोला  मारू की एक आधुनिक लोक कथा सुनाऊं / वैसे तो  मैंने इस ब्लॉग की    शुरुआत   एक बेहतरीन उपन्यास " नई सुबह" से किया था /  पर  आज की कथा  लोक समाज की कथा है /

 मारू हीरापुर गांव में रहती थी  /  एक दिन उस गांव में बहुत खुबसूरत एक परदेसी आया / उसका नाम ढोला था / आते ही ढोला ने गांव वालों का दिल जीत  लिया  / वह बांसुरी बहुत अच्छी  बजाता /  उसकी  बांसुरी के धुन में मारू खोती  चली गई  / धीरे - धीरे ढोला  और  मारू आपस में  प्रेम करने लगे /  प्रेम में पगे जोड़ों की तरह ढोला  और मारू भी प्रेम में जीने और मरने की कसम खाने लगे /  ढोला  अपनी   मारू के लिए सबकुछ  छोड़ने को तैयार था / वह मारू को दुनिया के सारे  सुख देने की कसमें खाने लगा / मारू भी उन कसमों पर भरोसा करने लगी /
पर एक दिन मारू पर  विपत्तियों  का पहाड़ टूट पड़ा  जब उसके सामने सिहलगढ़  की रहने वाली मारवाणी  आ खड़ी हुई /  मारवाणी  ढोला की महारानी  थी / वह ढोला को अपने साथ ले जाने के लिए आई थी /  पर ढोला उस समय लौटने के लिए  तैयार न हुआ  /  मारवाणी  थक कर वापस सिहल गढ़ लौट गई थी / पर मारवाणी के लौटने के बाद  ढोला का मन इस गांव से उखड़ने  लगा  था /  मारू और ढोला  के सम्बन्ध यहीं से बिखरने लगे  थे /  समय गुजरने के साथ  ही ढोला के सपनों में भी तब्दीली आने लगी थी / अब ढोला केवल धन कमाने का ख्वाब देखता / उसे बहुत सारा धन कमाना था / उसे दुनिया को बहुत कुछ दिखाना था / समय के साथ ढोला  बदल गया था या ढोला ऐसा ही था - मारू समझ नहीं पाती / अब ढोला को मारू  के चेहरे  की उदासी बेचैन नहीं  करती थी / वह मारू को दरकिनार करने लगा /  ढोला को अब मारू की कोई भी बात गाली  लगती थी /
वह अब मारवाणी के साथ अपने सुन्दर को लेकर पहाडपुर में बसने का सपना देखने लगा / एक दिन ढोला का सपना पूरा हो  गया / पंखों वाला घोडा  एक दिन  जमीं पर उतर आया / वह  उस घोड़े पर बैठकर अपनी मारवाणी  को लेकर  पहाडपुर चला गया / वह वहां जाकर व्यापर करने लगा / अब उसके पास बहुत सारा धन जमा हो गया था /  बहुत वर्ष बीत गए थे / एक दिन उसे उसे हीरापुर गांव  की बहुत याद  आई और साथ ही मारू की भी याद आई जिसे वह  कभी प्यार करता था और उसे बिना बताये  वह पहाडपुर आ बसा था / पर अब
पहाडपुर से गांव लौटना संभव नहीं था / पहाडपुर की माया ही ऐसी थी / इधर मारू  उसकी प्रतीक्षा  में एक पत्थर के रूप में  बदल चुकी थी /  आज भी हीरापुर गांव में  उस  पत्थर के दर्शन किये जा सकते हैं /

बुधवार, 7 नवंबर 2012

Every night we go to bed, we have  no assurance to wake up alive next morning but still we set alarm for tomorrow = that's hope
When  you throw a one year old baby in the air, he laughs because he knows his father will catch him = that's trust
once , all villagers decided to pray for rain. On the day of prayer all people gathered but only one boy came with umbrella = that's faith

सोमवार, 5 नवंबर 2012

कवि की चिंता (2)

सदी का सबसे बड़ा कवि चिंतित था
किसानों के लिए , आदिवासियों के लिए
दलितों के लिए ,  स्त्रियों के लिए /
वह सोचता
किसानों , आदिवासियों , दलितों  और  स्त्रियों   के बिना
यह पृथ्वी  कैसी होगी ?
पृथ्वी का काम कैसे चलेगा इनके बिना /

फिर धीरे - धीरे वह एक ऐसी
दुनिया  में दाखिल हो जाता
जहाँ जंगल में दुनिया भर के
जुगनू अपनी रौशनी में 
नहा  रहे होतें /

कवि की चिंता

    सदी का सबसे बड़ा कवि चिंतित था
    गाँव   को शहर में बदलता देख
और शहर को धीरे - धीरे मरता देख /

वह चिंतित था
कुछ सवालों से
जो आये दिन
उसकी पेशानी  पर
यकायक उभर आते थे
चैनलों की  बाढ़  में उसे
अपना देश जुगाली करता  दिखता  /

उसके सपनों में आते
बुजुर्गियत  ओढ़े   बच्चे  ,
नंगी औरतें ,
आधुनिकता  को ढोल की तरह
लटकाए युवा
और वह आम आदमी भी
जो गाँधी की टोपी की मानिंद
इधर से उधर उछाला जा रहा था  /

आम आदमी का मुहावरा
कवि  के चेहरे को नमकीन बना रहा था /
इस मुहावरे  के जरिए  वह दाखिल हो रहा था
एक  ऐसी तिलस्मी  दुनिया में
जहाँ पुरस्कारों के लिए
उसकी पीढ़ी  के कवि
कोरस में मर्सिया पढ़ रहे थे /







रविवार, 4 नवंबर 2012

सवाल

वन में अकेली बैठी सीता
सोच रही थी
राम के निर्वासन में बदा था
मेरा भी निर्वासन /
पर मेरे  निर्वासन में
राम कहां  हैं ?

राम ,  राजा राम तो बन गएं
पर पति की आस्था कहां रख पाएं  ?
साथ चलने की शपथ मैंने निभाई
परन्तु राम के जेहन में
केवल धोबी की छवि आई /

राम , तुम धन्य हुए
पर सीता से छिन्न भी हुए/    

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

कल  करवा  चौथ था /  दाम्पत्य  प्रेम के बंधन को आस्था के डोर से बाँधने वाला व्रत / हम औरतें  अपने पतियों या प्रिय के लिए , उसके सुख - समृधि  के लिए , उसकी आरोग्यता के लिए      निर्जला  उपवास रखतीं हैं / हम तो अपना सारा जीवन अपने पतियों के लिए वारती  हैं/पर बहुत  कम पति इस बात को समझ पाते  हैं /  हम औरतें भी अजीब हैं / किसी  को अपना मान लिया तो बस मान लिया और वह लाख चाहे उसकी परवाह न करता हो पर इससे  हम पर कोई फर्क नहीं पड़ता /  हम औरतें  इस मायने में बहुत मजबूत और  दृढ होती हैं / कल  का दिन हमारे प्रेम के परीक्षा का भी था / मैंने तो अपना फर्ज निभाया /  सारा दिन  चाँद के प्रेम में उपवास रखा / उसकी प्रतीक्षा करते - करते  रात के साढ़े आठ बज गए / तब जाकर चाँद देवता मुस्कराते हुए उदित हुए / चाँद देवता  ही तो आज के दिन आराध्य  होते हैं / दूर आकाश में बादलों की ओट में छिपे आखिरकार चाँद देवता अपनी  आराध्याओं   पर  प्रसन्न  होकर  सामने आये /  चाँद देवता ने तो अपनी टेक निभाई  पर .........../  आस्था , विश्वास , प्रेम , ......... मिट नहीं सकते / इस व्रत की यही तो महिमा है /  हमारी संस्कृति  यही सिखाती है /  आस्था रखो / इससे बड़ा बल कोई नहीं है/