मंगलवार, 26 नवंबर 2013

ऐ मेरे मौला ....

  मेरे मौला .....
कहाँ सोया है तू ....
मुझे भी दे ऐसी नींद 
कि उठ    पाउँ
किसी की पुकार पर/  

जाग मेरे मौला .....
थक चुका मैं ... 
उठ  अब 
फरियाद सुन ...
मुझे भी दे ऐसी नींद
कि उठ    पाउँ
किसी की पुकार पर/


अब  खत -  किताबत बंद कर दो 
मेरा पता बदलने वाला है /

अंत हो चुके हैं दुनिया के मसलह  
मैं अपने मसलह   से जा रहा हूँ /

मेरी निशानियों में मुझे खोजने की कोशिश  करना 
कुछ निशानियाँ मैं छुपाकर अपने साथ लिए जा रहा हूँ /

यह नहीं कि मिट जाएँगे सब गम तुम्हारे 
कुछ गम तुम्हारे मैं अपने सीने में लिए जा रहा हूँ /
. 

वीपी . सिंह की नजमें 

शनिवार, 23 नवंबर 2013

हमारे बाबूजी ..

हमारे  बाबूजी ....
रिटायर हो चुके हैं ......
हमने भी उनको
घर का एक कोना दे दिया है
जहाँ
एक सामान की तरह पड़े रहना है उन्हें  /

बाबूजी ....
हमारे घर की नींव थे
पर आज
हमें  अपने   कांगूरों से प्यार है /

हमने उन्हें अपनी दुनिया से बेदखल  कर दिया है
सौंपा  है उन्हें एकांत
जहाँ केवल धुन्ध है
चेहरों पर/ 
और 
उदासी के साथ 
अपने चूकने की पीड़ा भी है /


अब अक्सर
वे दूर तक निकल जाते हैं
जहाँ हमारी हँसी की खिलखिलाहटें
नहीं पहुँच पातीं / 

  कहीं दूर  से लौटते हुए बाबूजी  सूनी निगाहों से 
टटोलते हैं 
अपनों के चेहरों  पर 
थोड़ी - सी मिठास 
और थोड़ा - सा नमक / 


गुरुवार, 21 नवंबर 2013

चिट्ठी.आई है ..

दूर से  थैला लटकाए एक डाकिया आता है 
मुठ्ठी भर मुस्कान के साथ 
घर - आँगन 
बेसब्री से दुआर तक  जाते हैं /

बु की  चिट्ठी आई है
खैर - खबर तो ठीक है 
पर इस बार भी 
आना नहीं हो पाएगा ....

काम का बोझ ज़्यादा है 
रुपया के लिए हाड़ गलाना  पड़ता है 
परदेश में 
सब कुछ भुलाना पड़ता है 
आदमी आदमी नहीं रह जाता 
बस एक इंतजार रह जाता है  
अगली बार उँगा 
भरोसा दिलाया  है /

चिट्ठी के साथ 
  रती है
उदासी की एक शाम
और 
आँगन    में  बैठी  गौरय्या 
फुर्र से   उड़ जाती है 
परबतिया   जांत पर 
दुख का एक राग छेड़ देती है ....
चुपके से तारे....
 तर आते हैं चूल्‍हे के पास 
और चाँद 
आँगन में बैठा उंघने लगता है 
चिठ्ठी आई है ....

शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

आश्वस्त हूँ ....

आश्वस्त  हूँ
इस पृथ्वी पर
कहीं कोई मेरा इंतजार नहीं कर रहा होगा /

 खुले रखे होंगे
किसी ने दरवाजे....
 किसी हल्के आहट पर
कोई पीछे मुड़कर
मेरे लिए देख रहा होगा /


 कोई चिट्ठी आएगी मेरे नाम
 मुंडेर पर रखा जाएगा 
मेरे नाम का दीया ....

धीरे - धीरे झड़ता जाउँगा 
बुरादे की तरह ....
तुम्हारी स्मृतियों से
और एक दिन 
लौट जा उँगा  
अपनी माटी के पास

आश्वस्त  हूँ
कहीं कोई मेरा इंतजार नहीं कर रहा होगा /




गुरुवार, 14 नवंबर 2013

नये घर की तलाश में

सूरज  पहाड़ की ढलान से उतर रहा है
 
शायद एक नये घर की तलाश में
वह भी मेरी ही तरह

बड़ी जल्दी में है .....

मुझे भी जाना है
कुछ सामान समेटना है
कुछेक को यूँ ही छोड़ जाना है

सोचता हूँ ...
जिंदगी की पोटली से
दुख के उन चेहरों को
साथ ले लूँ ...
जिनसे मैं न्याय नहीं कर पाया
भागता रहा
पीछा  छुड़ाता रहा /

अपनी बेवफ़ाइयों  पर रंज है मुझे
मेरे कमजोर कंधे
उठा नहीं सके थे 
मेरे झूठे वादों का बोझ 
जिन्हें मैं लाद आया था 
उन मासूम चेहरों पर 
जो पीछे छूट गये थे 
अकेले 
लगातार 
शून्य से 
शून्यतर होने के लिए / 


मैं शून्य नहीं बनना चाहता था 
मुझे वह नीला आकाश चाहिए था 
जहाँ  तोतों का झुंड 
इंद्रधनुष  रचता है / 

मेरे पास पूरी पृथ्वी थी 
जो शिद्दत  से 
मेरे अपने होने का प्रमाण दे रही थी 
चुटकी  भर सिंदूर और बिछुए में 
मुझे बचाए हुए थी 
और अपने प्रेम को भी / 

पृथ्वी और आकाश 
मेरी  जीवन यात्रा के यही तो धुरी थे 
जिनमें मैं  ता उम्र 
किसी ग्रह की तरह चक्कर काटता रहा / 

कभी सोचा ही नहीं 
उन  चेहरों के बारे में 
जिन्हें मैं
आहिल्या की तरह शापित कर आया था 
जो मेरी शर्तों पर 
हार गये थे अपनी जिंदगी की बाजी /
कोई अजन्मा ही रह गया था 
ताकि मैं जिंदा रह सकूँ 
अपनी पृथ्वी के साथ 
अपने आकाश के साथ / 

सूरज जा  चुका है 
शायद उसे नया घर मिल गया  होगा 
मैं भी चलूं 
शायद 
मेरा भी नया घर कहीं इंतजार कर रहा होगा / 


बुधवार, 13 नवंबर 2013

कुछ बहाने

कुछ बहाने 
अपने आप में   कितनी बड़ी वजह बन जाते हैं 
वक्त  आने पर 
हम हम नहीं रहते 
तुम तुम नहीं रहते....

दूर कहीं एक रेलगाड़ी आती है ...
और 
हम चल पड़ते हैं ....
पीछे छोड़ते हुए एक लंबा इंतजार .../

कुछ चि ठि  यां ....
बिना बाँ चे रह जाती हैं 
 दुख चुपके  से आता है
और 
मन के एक खाली कोने में 
एक घर बना लेता है 
दुख के साथ आते हैं 
वे दिन भी 
जब तुम्हें छोड़ आया था 
स्टेशन के भीड़भाड़ में ...

और तुम इंतजार करती रह गई थीं ...
शायद अंतिम ट्रेन छूटने तक ..
तुम बोझिल कदमों से 
लौ  ती  हुई 
भीड़ में गुम हो गईं थीं

मैं भी लौटा था ...
अपने कुछ हानों  के साथ ..../




शनिवार, 2 नवंबर 2013

तुम्हारी याद में

रोशनी से नहाई इस दुनिया में
मेरे मन का एक कोना
अंधेरे से लड़ रहा है ....

अपनी बेटी से आँख चुराते हुए
मैं तुम्हारी याद में 
एक दीया 
चुपके से जला रहा हूँ ....

हमारी बेटी 
बिल्कुल तुम पर गई है 
मुझे किसी बच्चे -सा पालती है 
और बात - बात पर 
तुम जैसा हँस देती है ....

डरता हूँ अपनी बेटी के प्यार से 
उसे बाँधकर रखना चाहना हूँ 
अपनी जिंदगी के डोर से 

तुम भी प्यार करती थीं मुझसे 
पर कहाँ बाँध पाया तुम्हें ....
सारे बंधन धरे के धरे रह गये थे 
तुम चली गईं थीं .....
मैं पीछे छूट गया था 
खाली - सा 
वीरान  - सा /