मंगलवार, 23 सितंबर 2014

अँधेरा है पर उम्मीद भी

 मेरे समय के शब्द
 जोखिम  उठाने से डरते हैं
एक घना अंधकार
धीरे - धीरे  उत्तर आया है
हमारी  जिह्वा/  पर
और
हम लगातार
एक लय  में सिर  हिलाते
कोरस में
कुछ  बुदबुदाते
चल पड़े हैं
उस  ईश्वर की शरण में
जो  हमारी ही तरह
असमर्थ है
बेबस है
निरीह है
वह भी जोखिम उठाने से डरता है /

सुना है
आजकल
वह भी
ताकतवरों  की ही सुनता  है
उनक हाँ में हाँ मिलाता  है
और
उनकी  प्रार्थनाओं पर
मौन होकर मुस्कुराता है /


ताकतवर। ...
और ताकतवर होते जा रहे हैं
बढ़ रही है उनकी ताकत
झुक रहे हैं सिर
उनके सज़दे  में
कट  रहीं हैं जीभें
नापी जा रही हैं गर्दनें /

पर यही  पूरा सच नहीं है    
एक सच और है
दुनिया का   सौंदर्य
बदलता है
उम्मीद से /
और मेरे पास
अँधेरा भी है
और उम्मीद भी /