मंगलवार, 29 नवंबर 2011

मुहावरा का बासी पड़ना

जिंदगी उसी की है
जो किसी का हो  गया -
यह मुहावरा अब बासी पड़ता जा रहा है
कोई किसी का नहीं होता -
जिंदगी का फलसफा तो यही कहता है /

जिंदगी के फलसफे में
 तजुर्बे ने भी हाँ में हाँ मिला दी है
अब कहाँ गुंजाइश है
बहस करने की ?
कुछ अपने तर्क देने की  
कुछ औरों की सुनने की

जिंदगी के तजुर्बे ने फलसफे से दोस्ती जो कर ली है
सच कहूँ दोस्तों ! यकीन करोगे न
तुम्हें नहीं लगता कि यक़ीनन  
अब जिंदगी का मुहावरा बासी पड़ता जा रहा है / 

रविवार, 27 नवंबर 2011

अदना आदमी की चिंता

कहते हैं समय बड़ा बलवान होता है
पर उसकी लड़ाई मेरे जैसे अदने
आदमी से क्यों है ?
मैं तो उसे  चुनौती नहीं देता
और न ही उसको ललकारता हूँ
न ही देता हूँ देख लेने की धमकी
मैं तो चुपचाप सिर झुकाए
निकल आता हूँ उसके
सामने से /

जनता हूँ
समय से मुठभेड़ करना
मेरे जैसे अदने आदमी को
शोभा नहीं देता
पर समय
वह कहाँ छोड़ता है मुझे

ला पटकता है
 स्मृतियों के घने बीहड़ वन में
जहाँ   अतीत के फडफडाते इतिहास के
   पक्षी
बेचैन होकर
अपने डैने खोलते हैं /

मैं अदना -सा  आदमी हूँ
वर्तमान में जीता  और मरता हूँ
बहसों , संवादों
से दूर भागता हूँ
जनता हूँ
आज
ये मात्र खोखले शब्द बन चुके हैं /
जिनके पेट भरे हैं
दिमाग भरे हैं
ज्ञान और सूचनाओं से
 जो दूसरों को आतंकित करते हैं
वे प्रबुद्ध जन
जो  इन्तेक्चुअल्स का टैग  लगाये
समय के बाजार में बिक रहे हैं
जो बहस और संवाद के शोर में
नगाड़ा  बजा रहे हैं
उनकी चिंता की  लकीरें बस
टेलीविजन  के परदे पर दिखती हैं /

मैं भाग रहा हूँ
या
भगाया जा रहा हूँ  उनके द्वारा
कौन जनता है
समय कब मेरे सामने खड़ा हो जावे
और
मैं चुपचाप सिर  झुकाए
उसके सामने से निकल  आऊं  

शनिवार, 26 नवंबर 2011

केदारनाथ सिंह की एक छोटी -सी कविता - 'जाना '

मैं जा रही हूँ ---- उसने कहा
  जाओ  ---- मैंने उत्तर दिया
यह जानते हुए कि जाना
हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया है / 

भारतीय लोकतंत्र आखिरकार कहाँ जा रहा है ?

आज- कल हिंदुस्तान में जो घट रहा है वह वाकई यह सोचने पर मजबूर कर रहा है कि आखिर हमारे देश में लोकतंत्र को सही दिशा कब मिलेगी ?  अभी हाल में कुछ घटनाएं ऐसी घटी हैं  जिसका किसी भी रूप में समर्थन नहीं किया जा सकता है / कुछ दिनों से इस देश में    अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर या विरोध के नाम पर किसी पर जूते  फेंकना  , जूते दिखाना , थप्पड़  मारना आदि  ऐसी असामाजिक हरकतें हो रही हैं  जो लोकतंत्र में आस्था रखनेवालों को और उनको भी जो अपने आपको सभ्य समाज का नागरिक मानते हैं , कुछ सोचने पर मजबूर करतीं हैं / यहाँ  सिर्फ सोचना ही नहीं है बल्कि ऐसी घटनाओं का पुरजोर विरोध होना चाहिए / हर राजनीतिक पार्टी का अपना एक  अजेंडा होता है /उसकी अपनी नीतियाँ होती हैं /अगर उसकी नीतियाँ गलत हैं तो उसका विरोध होना चाहिए / पर विरोध के नाम पर किसी को थप्पड़ मारना या उस पर जूते चलाना कहाँ तक जायज है ? अगर आक्रोश है तो किसी एक व्यक्ति पर वह क्यों निकले ? लोकतंत्र में विरोध के और भी तरीके हैं / भ्रष्टाचार और महंगाई के खिलाफ इस प्रकार का आक्रोश हमें कहाँ ले जायेगा ? क्या इससे कोई राह निकलेगी?

अब एक अन्य मुद्दे पर आपलोगों से कुछ साझा करना चाहती हूँ / अभी हमारे कुछ राज्य  माओवाद से लगातार  जूझ और निपट रहे हैं / अब तक हजारों सुरक्षा कर्मी , पुलिस कर्मी ,निर्दोष लोग इस माओवाद की हिंसक कार्रवाइयों  में अपने  प्राण गवां चुके हैं / अभी किशन जी को एक मुठभेड़ में मार  गिराया गया है /अब देखिये उसको लेकर देश में राजनीति होनी शुरू हो गई है / इसको राजनीति का रंग दिया जाने लगा है / अब देखिये इसको लेकर मानवाधिकारों की बात होने लगी है / अरे भाई ! जब निर्दोषों को माओवादी मार रहे थे तब मानवाधिकार कहाँ तेल लेने चला गया  था ? उस समय किशनजी या   माओवादिओं को आपलोगों ने क्यों नहीं समझाया कि निर्दोषों को मारना भी मानवधिकार का उल्लंघन  है /  

रविवार, 20 नवंबर 2011

केदारनाथ सिंह की एक कविता

    इस शहर को इसकी  नींव की सारी
            ऊष्मा समेत
           यहाँ से उठाओ
      और रख दो मेरे कंधे पर
मैं इसे ले जाना चाहता हूँ किसी  मेकेनिक के पास

        मुझे कोई भ्रम नहीं
 कि मैं इसे ढोकर पहुंचा दूंगा कहीं और
     या अपने किसी करिश्मे से
     बचा लूँगा इस शहर को

      मैं तो बस इसके कौओं को
       उनका उच्चारण 
      इसके पानी को
     उसका पानीपन
     इसकी त्वचा को
उसका स्पर्श  लौटाना चाहता हूँ

मैं तो बस इस शहर की
लाखोंलाख  चींटियों की मूल रुलाई का
हिंदी में अनुवाद करना चाहता हूँ / 

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

शायद कोई आने वाला है .........

     एक    मुट्ठी  भर  रंग

       फ़ेंक कर सूरज

   दूर कहीं छिपकर

   सोने चला  गया

    उस रंग से
आसमान ने अपना  चूनर
     रंग लिया
और वह चूनर
ओढ़ संध्या  धीरे - धीरे
उतर आई धरती के आँगन में

वृक्षों की  फुनगियों ने
सिर हिलाकर स्वागत किया
और लगी गाने मंगल गान
उस गान में डूब गई
दिन भर की थकान /

तभी दूर कहीं झिलमिलाने लगा
सपनों का संसार
तारे उग आये
चाँद आसमान के उस कोने में खड़ा
मुस्कुराने लगा /

 शायद कोई आने वाला है .........
चुपके से कान में
लजाती हुई हवा कह गई ....

१८.१०.11

बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

आडवाणी के रथयात्रा के मायने

  आडवाणी जी रथयात्रा पर निकल चुके हैं / पर सोचनेवाली बात यह है कि इससे बीजेपी को कितना  फायदा  होगा / वैसे भी बीजेपी के पास कोई मजबूत अजेंडा नहीं है /वह देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी तो है पर उसकी भूमिका उतनी दमदार नहीं है / इस पार्टी में कोई ऐसा नेता नहीं है जिसे सर्वसम्मति से सब स्वीकार कर सके / आडवाणी जी खुद अपने आपको कभी-कभार  प्रधानमंत्री के रूप में  प्रोमोट करते रहते हैं पर अक्सर उनके इस  प्रोमोशंन पर हल्ला मचता रहता है / इस दौड़ में मोदी भी दौड़ रहे हैं तो गडकरी भी लगे हाथ इसमें शामिल हो जा रहे हैं /   आडवाणी जी रथयात्रा के पीछे अपनी और अपनी पार्टी की यह मंशा बता रहे हैं कि इससे भ्रष्टाचार  को खतम करने में मदद मिलेगी और जनता  कांग्रेस के खिलाफ लामबंद होगी /  पर इस रथयात्रा से कोई फरक नहीं पड़ने वाला है / हाँ , बीजेपी के कार्यकर्ताओं में एक जोश जागेगा / 

सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

 नदी को याद  करती हुई    कविताओं में सबसे बेहतर कविता


       हम अगर यहाँ न होते आज तो
            कहाँ होते , ताप्ती ?
     होते कहीं किसी नदी - पार  के गांव के
        किसी पुराने कुएं में
    डूबे होते किसी बहुत पुराने पीतल के
        लोटे की तरह
जिस पर कभी - कभी धूप भी आती
और हमारे ऊपर किसी का भी नाम लिखा होता /

या फिर होते हम कहीं भी
किसी भी तरह से साथ- साथ रह लेते
दो ढेलों की तरह हर बारिश में घुलते
हर दोपहर गरमाते /--   उदयप्रकाश

मीडिया इरोम शर्मीला के अनशन के प्रति उदासीन क्यों ?

 मीडिया की भूमिका  कभी -कभी बड़ी चौकानेवाली होती है / अभी हाल ही में मीडिया ने जिस तरीके से अन्ना हजारे के अनशन को लाईम   लाइट में रखा उससे एक बात तो  सिद्ध होती है कि मीडिया जिसे चाहे  उसे  जब चाहे हवा दे सकती है और उसके पक्ष में हवा बना भी सकती है /. अन्ना के  अनशन को  मीडिया ने ऐसा कवर किया  कि लगा  कि अब तो कोई क्रांति होकर ही रहेगी / लोगों के सर पर अनशन का जादू चला / लोग भ्रष्टाचार को ख़तम करने के लिये कमर कसने का अभिनय करने लगे / दोस्तों , इस अभिनय से कुछ होने वाला नहीं है / अभी  देखिये  अन्ना की यह मुहिम   आंधी बनती है या पानी का बुलबुला ? अन्ना की बात करते  समय हम उस औरत को भूल जाते हैं जो पिछले   दस सालों से भूख हड़ताल पर है/  वह भी अनशन ही कर रही है/ मणिपुर की सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मीला  सशस्त्र बल  विशेषाधिकार अधिनियम  को हटाने की मांग में वह अनशन पर बैठी हुई है पर हमारी बुद्धिमान और सजग मीडिया के पास वक्त  नहीं है कि वह जाकर इस मुद्दे को लाइम- लाइट में लाये / असल में मीडिया भी उन्हीं मुद्दों को पकड़ती है जो सनसनाहट पैदा करती हैं/ यानी जो बिक सकता है खबरों के बाज़ार में वही मीडिया को पसंद आता है /  अभी अन्ना का बाज़ार भाव  ज्यादा  है / इसीलिये अन्ना अभी  समाचारों में बने रहेंगे /  

मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

कांग्रेस की परेशानी

 कांग्रेस की परेशानी अब दिनों दिन बढती जा रही है /   एकाध सालों में कांग्रेस के नेता जिस तरीके से कांग्रेस की नैया चला रहे हैं उससे तो साफ़ पता चल रहा है कि पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों  में इनकी नाव  डूबने  वाली है /  जिस तरीके से कांग्रेस के नेता भ्रष्टाचार पर स्टैंड लेते रहे हैं वह उनकी पार्टी के   लिये  शुभ नहीं है /  अब देखिये  अन्ना हजारे के अनशन वाले मुद्दे को कांग्रेस के नेताओं  ने कैसे हलके ढंग से लिया और कांग्रेस की  भद पिट  गई /  कांग्रेस की सरकार की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि उसका मुखिया एक  ईमानदार  छवि वाला व्यक्ति है पर उसका उसके बेईमान सिपहसालारों पर कोई वश नहीं है /  सब भ्रष्टाचार की फसल काटने में अपनी भूमिका निभा चुके हैं /  उनके जो  युवराज हैं , जिन्हें भावी प्रधानमंत्री का  ओहदा मिलनेवाला है वे अभी भारतीय  राजनीति का ककहरा सीख  रहे हैं / ऐसी बात नहीं है कि वे राजनीति में बिलकुल  अनाडी हैं बल्कि राजनीति तो उन्हें विरासत में मिली है पर उन्हें अभी बहुत कुछ सीखना है /

अब कल अन्ना ने एक नया अल्टीमेटम कांग्रेस को पकड़ा दिया है   कि बिल नहीं तो वोट नहीं / उन्होनें साफ़ साफ़ कह दिया है कि अगर  जन लोक पाल  विधेयक नहीं लाये तो चुनाव में कांग्रेस का विरोध करेंगे / कांग्रेस की आफत यह है कि अभी  आम जनता  भी कांग्रेस से थोडा रुष्ट है  क्योंकी  बढती हुई महंगाई ने उसकी कमर तोड़ दी है और वह देख रही है कि सरकार इस महंगाई को काबू में लाने  के लिये  कोई खास कदम नहीं उठा रही है/  ऊपर से उसके मंत्रियों के  बयान आग में घी का काम कर रहे हैं / अभी गरीबी की जो सीमा -रेखा  तय की गई है सरकार के द्वारा उससे सरकार की  अच्छी खासी फजीहत हुई है /  कांग्रेस की आलाकमान को अब जागना ही पड़ेगा नहीं तो कांग्रेस की   लुटिया कांग्रेस के नेता ही डूबा देंगे /

शनिवार, 17 सितंबर 2011

नरेन्द्र मोदी का नया अवतार

आज से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी तीन दिनों के लिये अनशन पर बैठकर एक नई  राजनीतिक बिसात बिछा  चुके हैं / उन्होंने इस अनशन को शुद्धिकरण का नाम दिया है पर राजनीतिक   हलकों में इसके कुछ और अर्थ लगाये जा रहे हैं /  तीन दिनों के अनशन के बाद नरेन्द्र मोदी का क्या नया अवतार होगा ? कहीं इसके पीछे कहीं कोई राजनीतिक मंशा तो नहीं छिपी है ?  वैसे भी इन राजनीतिक  नेताओं के हर  कार्यकलापों के पीछे कोई न कोई राजनीतिक  चालें  छिपी रहती हैं /  अभी इन नाटकों को देखकर लगता है कि देश में अनशनों का फैशन चल पड़ा है / अनशन जैसे कारगार हथियार का अगेर इसी तरह   इस्तेमाल    होता रहा तो यह हथियार भी एकदिन भोथरा हो जायेगा /

सोमवार, 5 सितंबर 2011

गाँव

गाँव , तुम कहाँ खो गए ?
बरसों जहाँ तुम्हें छोड़ आई थी
तुम वहां तो नहीं हो !

                 पर
मेरी  स्मृति के  उजले  पन्नों पर
            इतिहास
के पुराने खंडहरों की तरह दर्ज हो /

जहाँ अवकाश पाते  ही
मन लम्बी छुट्टियों पर चला जाता है
तलाशने लगता है
कुछ विस्मृत हुए लोगों को /
दोहराने लगता है
कुछ भूले हुए किस्सों को
भूले हुए अनगिनत  चेहरे
फ़िल्म की रील की तरह
चलने लगते हैं /

बूढी आजी , बाबा , वह महुआ का पेड़
आम का बगीचा , माटी  की सोंधी गंध
वह चार बीघा खेत, वह अपना  आँगन , वह दुआर /

कहते हैं लोग कि
अब तुम  नहीं रहे
पर  विश्वास नहीं होता
गांव  तुम मर नहीं सकते /

हर पल तो तुम्हें
अपने सीने में  धड़कता  हुआ पाती हूँ
कैसे कहूँ कि तुम  नहीं रहे ?

शनिवार, 3 सितंबर 2011

मुबारकें

  तेरे दिल में कोई और घर कर  गया
  तुझसे कैसे अब मैं मुबारकें लूँ ?
  कभी मंजिल हमारी एक थी
    आज  राहें  जुदा हैं

तू रह अपने हमसफ़र के  साये में 
मैं भी अब तनहा एक सफ़र में हूँ /

तू मुबारकों में रह  आमीन
मैं अभी  बद्ददुआवों  के  सायों में हूँ/

तू  चलाचल  अपनी  आरजूओं की मिन्नत में
 ख्वाहिशों की बंदगी  कर
मैं अभी जिंदगी  वीराने के बसर में हूँ /

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारी भूमिका ?

आज देश  भ्रष्टाचार के खिलाफ संजीदा हो उठा है /  ६४ सालों में पहली बार ऐसा हो रहा है कि अन्ना  की  वजह से  पूरा देश   भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए कमर  कस कर खड़ा  है / यह एक शुभ संकेत है /  पर यह भी ध्यान में रखना जरुरी है कि यह  लड़ाई सिर्फ अन्ना  की नहीं है   बल्कि  इसके लिए हम सभी को अपने आचरण में तबदीली लानी होगी / सिर्फ कानून बना देने से भ्रष्टाचार का राक्षस  खत्म नहीं होगा /  इस देश में कानून की  धज्जियां जिस तरीके से उड़ाई जाती हैं उसको देखकर ऐसा नहीं लगता कि सिर्फ  एक मजबूत लोकपाल बना कर हम भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म कर देंगे / वैसे अन्ना खुद कह भी रहे हैं कि इस  लोकपाल से केवल ६० प्रतिशत भ्रष्टाचार खत्म होगा / जब तक हिंदुस्तान  के लोगों की मानसिकता बदलती नहीं है तब तक यह लड़ाई अपने असली मुकाम पर नहीं  पहुंचेगी / भ्रष्टाचार के लिए केवल नेता ही दोषी नहीं हैं बल्कि हर वह आदमी दोषी है जो अपना काम निकालने  के लिए दो नम्बरी रास्तों का सहारा लेता है /  हममें से शायद ही कोई ऐसा हो जिसने भ्रष्टाचार को बढ़ावा  देने में अपनी कोई भूमिका का निर्वाह न किया हो /  एक तरफ हम भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए नारे लगा रहे हैं , अन्ना के साथ रहने का वादा कर रहे हैं , सरकार को सोचने पर मजबूर कर रहे हैं , सभी  राजनीतिक   दलों के चेहरों से  मुखोटे हटा रहे हैं पर इस लड़ाई में सिर्फ इतना ही करने से भ्रष्टाचार नहीं मिटेगा /


अन्ना तो अपनी भूमिका का निर्वाह बड़ी ईमानदारी  से कर रहे हैं पर यह सवाल हमारे सामने खड़ा है कि क्या हम  अपने सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी बरतेंगे ?

मंगलवार, 23 अगस्त 2011

दो हाथियों की लड़ाई -उदयप्रकाश

          दो हाथियों का
             लड़ना
सिर्फ दो हाथियों के समुदाय से
     सम्बन्ध नहीं रखता /

दो हाथियों की लड़ाई में
सबसे ज्यादा कुचली जाती है
घास , जिसका
हाथियों के समूचे कुनबे से
कुछ भी लेना-देना नहीं/

जंगल से भूखी लौट जाती है
           गाय
और भूखा सो जाता है
घर में बचा

दो हाथियों   के
 चार  दांतों  और आठ पैरों द्वारा
सबसे ज्यादा  घायल होती है
बचीय  बचचे की नींद ,
सबसे अधिक असुरक्षित होता है
हमारा भविष्य /
दो हाथियों की लड़ाई में
सबसे  ज्यादा
टूटते हैं पेड़

सबसे ज्यादा मरती हैं
चिड़ियाँ ,
जिनका हाथियों के पूरे  कबीले से कुछ भी
लेना - देना नहीं
दो हाथियों की
लड़ाई को
हाथियों से ज्यादा
सहता है जंगल /
और इस लड़ाई में
जितने घाव बनते हैं
हाथियों के  उन्मत्त शरीरों पर
उससे कहीं ज्यादा
गहरे घाव
बनते हैं जंगल और समय
की छाती पर/
जैसे भी हो
दो हाथियों को
लड़ने से रोकना चाहिए /

अन्ना के आगे झुकी सरकार

आखिरकार कुम्भकर्णी सरकार की नींद टूटी और जागते ही समझौते के  लिए  कवायद शुरू हो गई है /  अब देखिए यह समझौता किन- किन  शर्तों पर होता है ? सरकार की नीयत से अन्ना  वाकिफ हैं इसलिए उन्होंने साफ- साफ कह दिया है कि जब तक सरकार  लिखित अश्वासन नहीं दे देती तब तक  सरकार पर भरोसा नहीं किया जा सकता है / अभी सरकार और सिविल सोसाइटी के बीच बातचीत का पहला दौर खत्म हुआ है   / कल भी यह  प्रक्रिया जारी रहेगी /  सोचने वाली बात है कि अभी  तक सरकार हाथ पर हाथ  धरे बैठे रही / उसने इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार नहीं किया जिसका  परिणाम यह हुआ कि सरकार  को इस मामले में मुँह की खानी पड़ी / फजीहत तो हुई ही /  कांग्रेस को इस बात का श्रेय देना चाहिए कि उसने  आजादी के बाद संपूर्ण क्रांति के आन्दोलन को भी हवा दी  तथा आजादी के ६४ वर्ष बाद  फिर से देश को एकजुट हो जाने के  लिए माहौल तैयार किया/ अन्ना  को नायक बनाने के पीछे कांग्रेस की गलत नीतियाँ और उसके बड़बोले नेता बहुत हद तक   जिम्मेदार  हैं /


अन्ना ने सचमुच बड़ी बहादुरी और दिलेरी का काम किया है  / अन्ना  तुमने उम्र के इस पड़ाव पर हिंदुस्तान को गहरी नींद से तो जगाया ही /  पर इस जागरण में कितने लोग जगे रहेंगे  और कितने वापस जल्दी से सो जाएंगे ? यह तो समय बताएगा/  जो भी  हो हम आपके जल्दी से स्वस्थ होने की    दुआ  मांगते हैं ताकि आप की दहाड़ सुनकर गूंगी और बहरी सरकार जगी रहे /

मंगलवार, 16 अगस्त 2011

सरकार का तुगलकी कदम और करारी हार

 अन्ना  और उनके सहयोगियों को गिरफ्तार करना आखिरकार सरकार की सबसे बड़ी भूल साबित हुई / सरकार ने यह जो  फैसला किया है यह अपने आप में    दिवालियापन का सूचक है / सरकार का यह फैसला  इस बात का प्रमाण है  कि सरकार  अन्ना से कितनी  भयभीत  है / महज १६- १७  घंटे में  सरकार को अक्ल आ गई और अन्ना को  रिहाई करने के  लिए  दिल्ली  पुलिस  को आदेश देना पड़ा /
पर समय हाथ से निकल चुका है / अब कमान अन्ना के हाथ में जा चुकी है  और अन्ना ने सरकार को पटकनी देते हुए   साफ -साफ और स्पष्ट रूप से   रिहा होने से इंकार कर दिया है / यहाँ अन्ना ने एक  नजरविहीन उदाहरण देश के सामने रखा है/ उन्होंने बिना किसी शर्त के अपने आप को रिहा करने की बात पर टिके हुए हैं /वे  शायद यह जानते हैं कि सरकार की मंशा ठीक नहीं है और उनका भी हस्र   बाबा रामदेव की तरह हो सकता है / पर यह तो  तय है  कि अब अन्ना के इस गुगली पर सरकार बोल्ड हो चुकी है  / सिर्फ सरकार की अड़ियल जिद की वजह से देश में एक तरह से नाटक का दौर चल रहा है / आज देश का बहुत बड़ा भाग अन्ना के साथ है/ उनके आन्दोलन में जनता अपनी रजामंदी जाहिर कर चुकी है/ अब कांग्रेस सरकार को चेत जाना चाहिए / अपनी गलतियों को स्वीकार कर  लेना चाहिए / यह भी सोचने वाली बात है कि अगर लोकपाल बिल के  घेरे  में प्रधानमंत्री आ जायेंगे तो कौन सा पहाड़ टूट जायेगा ? आप लोकतंत्र की बात करते हैं/ संसद की बात करते हैं तो  इस लोकतंत्र में अगर एक चपरासी  को भ्रष्टाचार   के लिये दण्डित किया जा सकता  है  तो  प्रधानमंत्री को  छूट देने का कोई  औचित्य नहीं रह जाता है / चलिए  अभी  सियासत के बहुत सारे रंग देखने  बाकी  है/ सत्ता के       खिलाफ लड़ाई यक़ीनन बहुत कठिन है / अन्ना इस लड़ाई में अपनी पूरी ताकत के साथ उतर चुके हैं और  इस लड़ाई में एक कारवां तो उनके साथ चल ही पड़ा है/                 

शनिवार, 6 अगस्त 2011

सरल रेखाएं - उदयप्रकाश

     मैं   तुम्हारे  बिना रह सकता था
    पृथ्वी पर अपनी उम्र भर
 यह मुझे   सिद्ध  करना था चुपचाप
      यह मैंने सिद्ध किया /

तुम भी रह सकतीं थीं  अपनी उम्र भर
         इसी  पृथ्वी पर
           मेरे बगैर
 तुमने भी सिद्ध किया /

अपनी तो इसी तरह उम्र पूरी हुई आखिरकार
अब दोनों अपना - अपना रास्ता  लें
दो सरल रेखाओं की तरह
जो अनंत तक कहीं भी न मिलते हों /

शनिवार, 23 जुलाई 2011

बेटियां

  बरसों बाद बेटी मायके लौटी है

घर - आँगन हंस - बोल रहा है
 दुआर पर पगुरा रहा बैल भी

हरिया  गया है /

बेटी आई है
घर तो गमकेगा ही
पलास की तरह
बेटी की हुलास में /

बेटियां होती ही ऐसी हैं
जहाँ जाती हैं वहीँ गांठ लेती हैं
संबंधों के  नए -नए डोर /

अंखियों का पनिया जाना !

      इन अंखियों का क्या करूँ ? सखी !
      जो बात -बात में पनिया जाती हैं 

       मनवा भी इन्हीं का साथ देता है 
                    सुनता ही नहीं है 
      राह जोहता है , बाट निहारता है उनकी
                  जो आने वाले नहीं हैं /


कैसे  समझाऊँ  सखी ?
यह मनवा न जाने कहाँ हिरा जाता है ?
बीते दिनों के उजाड़ वन में
फिर थक- हार कर लौट आता है
और अँखियाँ फिर
       पनिया जाती हैं सखी !

बुधवार, 20 जुलाई 2011

एक वृक्ष की हत्या

        अबकी  बार घर लौटा तो देखा वह नहीं था --
               वही    बूढ़ा चौकीदार वृक्ष
      जो हमेशा मिलता था घर के दरवाजे पर तैनात /

               पुराने चमड़े का बना उसका शरीर
                     वही सख्त जान
            झुरिर्योदार  खुरदुरा ताना  मैला  कुचला  ,
                  राइफिल - सी डाल,
               एक पगड़ी फूल पत्तीदार ,
             पावों में फटा पुराना जूता
          चरमराता  लेकिन अक्खड़ बल  बूता

धुप में बारिश में
गर्मी में सर्दी में
हमेशा चौकन्ना
अपनी खाकी वर्दी में

दूर से ही  ललकारता " कौन ?"
मैं जवाब देता , " दोस्त "
और पल भर को बैठ जाता
उसकी ठंडी  छाव में


दरअसल शुरू से ही था हमारे अंदेशों में
कहीं एक जानी  दुश्मन
 कि घर को  बचाना  है लुटेरों से
शहर को  बचाना है  नादिरों से
देश को बचाना है देश के दुश्मनों से

बचाना है ----
                            नदियों  को नाला हो जाने से
                            हवा को धुवां   हो जाने से
                            खाने को जहर हो जाने से


बचाना है - जंगल को मरुथल हो जाने से
बचाना है - मनुष्य को जंगल हो जाने से /


                                       -------      कुंवर नारायण

गुरु -शिष्य

किसी राज्य में पंडित वेद शर्मा नामक विद्वान रहते थे / उनकी विद्या की ख्याति दूर -दूर तक फैली थी /उनके पास राजा   वितंडवाहंन के पाँच राजकुमार विद्या  प्राप्त करते थे / राजकुमारों की शिक्षा जब समाप्त हुई , तब गुरु ने कहा - " शिष्यों , अब मैं  तुम्हारी परीक्षा लूँगा /"

 पाँचों राजकुमारों को  बिठाकर गुरु ने प्रश्न- पत्र  दे दिया / वे उत्तर लिखने लगें / गुरु बारी-बारी से हर राजकुमार  के पास जाकर देख रहे थे/ चार कुमारों को देखकर जब वे  पाँचवे   के पास पहुँचें तो देखा कि  वह  कुंजी में से नकल  कर रहा है /

 गुरु ने कहा - '' वत्स, यह कुंजी तूने कहाँ से प्राप्त की ?"

 कुमार ने कहा - " गुरुदेव, इसे मैं आपकी टेबल पर से उठा लाया था /"

यह सुनकर गुरु बहुत प्रसन्न हुए और उसे प्रथम घोषित  कर दिया /

                 ---------   हरिशंकर परसाई 

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

मुंबई आख़िर कब तक दहलती रहेगी ?

  फिर से एक बार मुंबई को बम विस्फोटों से आतंकवादियों ने थर्रा दिया है / आख़िरकार यह कब तक चलेगा? कब तक हमारी सरकार इन विस्फोटों पर चुप्पी साधे रहेगी ? कब तक बेगुनाह लोग इन हमलों में अपनी जान देते रहेंगे? सबसे बड़ी बात यह है कि हम इन विस्फोटों  को झेलने के आदी हो चुके हैं. विस्फोट होने पर कुछ दिन तो हम सुगबुगाते  हैं पर फिर वही चुप्पी और लापरवाही को ओढ़ लेते हैं

मंगलवार, 28 जून 2011

अन्ना हजारे और सिविल सोसाइटी के भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की आलोचना पर एक टिप्पणी

   अन्ना हजारे और सिविल सोसाइटी के  भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की अब आये दिन आलोचना हो रही है अब यह आलोचना भी एक मुहिम के तहत किया जा रहा है / इस मुहिम पर मुझे हिंदी के महत्वपूर्ण कवि कुंवर नारायण की एक कविता याद आ रही है जो मैं आप लोगों से साझा करना चाहती हूँ  /

                                    सम्मेदीन  की लड़ाई


                       खबर है
                  कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध 
बिलकुल अकेला लड़ रहा है एक युद्ध  
कुराहा  गाँव  का खब्ती सम्मेदीन

बदमाशों का दुश्मन
जान  गंवा बैठेगा एक दिन 
इतनी अकड़कर अपने को 
समाजसेवी कहनेवाला सम्मेदीन /


यह लड़ाई 
ज्यादा नहीं चलने की 
क्योंकि उसके रहते 
चोरों की दाल नहीं गलने की ........
एक छोटे -से    चक्रव्यूह   में घिरा है वह
और एक महाभारत में प्रतिछण 
लोहूलुहान हो रहा है सम्मेदीन

 भरपूर उजाले में रहे उसकी हिम्मत
दुनिया को खबर रहे
कि एक बहुत बड़े नैतिक साहस का  
      नाम है सम्मेदीन /

  जल्दी ही वह मारा जायेगा
सिर्फ उसका उजाला  लडेगा
अंधेरों के खिलाफ ....... खबर रहे
किस- किस के खिलाफ लड़ते हुए 
मारा गया निहत्था सम्मेदीन

बचाए रखना
उस उजाले को
जिसे अपने बाद
जिन्दा छोड़ जाने के लिये
जान पर खेल कर आज
एक लड़ाई लड़ रहा है
किसी गाँव का कोई खब्ती सम्मेदीन /

सोमवार, 27 जून 2011

सागर

      तुमसे मिलने के लिये

न जाने कितनी नदियाँ

पहाड़ों से भागती , दौड़ती, उछलती कूदती

                                     चली आती हैं /
उनमें  बेचैनी होती है

तुमसे मिलने के लिये

पर तुम उतने बेचैन नहीं दिखते

तुम अपनी विशाल बाँहों को फैला देते हो 

और नदियाँ तुममें समां जाती    हैं /

अपने वजूद को मिटाकर तुम्हें भर देती हैं
जानते हो ऐसा क्यूँ होता है ?

क्योंकि   नदियाँ स्त्री  होती हैं
हर नदी अपने आप में एक स्त्री है /

और सागर ! तुम

तुम एक पुरुष हो
जो अपने अहम् को विसर्जित  नहीं करता
वह अपनी टेक पर अड़ा रहता है

तुम्हें सबकुछ चाहिए
पर तुम दे नहीं सकते

हाँ, रात -दिन भयंकर या करुण
गर्जना कहें या पुकार
मचती रहती है तुम्हारे अंतर्मन में
लेकिन अपनी झूठी टेक के कारण
तुम नहीं लांघते अपने किनारों  को
तुम नदियों से मिलने पहाड़ों पर नहीं जाते /

हाँ,  चट्टानों से टकराते  अवश्य  हो
लेकिन सच्चाई तो और ही कुछ है
टकराती तो तुम्हारी लहरें हैं चट्टानों से
लहरें भी तो स्त्री ही हैं
हर लहर अपने आप में एक स्त्री है /
चट्टान ! वह भी तुम्हारी तरह पुरुष है
वह भी नहीं जाता लहरों के पास
लहरें ही जाती हैं उसके पास /

सागर! मैं तुमसे पूछना चाहती हूँ
तुम्हें प्यार चाहिए ,
समर्पण चाहिए ,
त्याग चाहिए
अपनापन चाहिए
घुलकर मिलकर मिटनेवाला चाहिए 
पर यही सबकुछ
अगर कोई तुमसे चाहे
तो तुम क्या दे सकते हो ?
हाँ, यह हो सकता है कि तुम यह कहो-
मैं भी तो जलता हूँ, तड़पता हूँ  
पर अपनी सीमा को तोड़ नहीं पता
 अगर मैं अपनी सीमा को तोड़ दूँ
तो प्रलय आ जायेगा /

जानती हूँ मैं 
कितनी झूठी कोशिश है 
अपने अहम् को बचाने की ?  

बुधवार, 22 जून 2011

शरण

       जिस शरण की तलाश थी

वह कहाँ मिली मुझे ?

फिर भी अंतहीन इंतज़ार में
मन बावरा -सा
कुछ तलाशता रहता है
यह   मोह      छूटे
नहीं छूटता !

आत्मा में थकान लिये
इस   शरीर की यात्रा जारी है
न जाने कहाँ ठौर मिलेगी ?

फिर भी आँखों में उम्मीद का
दिया झिलमिलाता है, दिपदिपाता है    
 मंजिल आखिरकार
एक न एक दिन
किसी आशीर्वाद की तरह
मिल ही  जाएगी /

रविवार, 19 जून 2011

पिता की स्मृति में

         तुम बार बार याद आए 

लड़ते लड़ते जब जब कदम लड़खड़ाए
तुम ही याद आये 

 तुम्हारा  वह मौन  त्याग  
वह गला देने वाला संघर्ष

 जीवट को कलेजे से  लगाये
तुम अपना जीवन वारते रहे हम पर 

और एक दिन तुम्हारा 
 चुपके से ऐसे चले जाना

मानो  ..............

जैसे कोई जीवन रीत गया हो  /

तुम सहेजते रहे  हमें
और हम
 तुम्हें अकेलेपन की ओर धकेलते रहे

तुमने हमें  स्वीकारा
और
हम तुमसे आजीवन असहमत  होते रहे /

तुम हमारे पिता थे 
जीवन का सारा पाठ तुम्हारी 
आँखों से पढ़ा था हमने 
सारी राहें तो तुमने हमारे लिये बनाई थी   
तुम्हारी हथेली पकड़कर हमने चलना सीखा था 

पर जब हम तेज दौड़ने लगे 
मेरे पिता तब तुम बहुत पीछे छूट गए थे  /

हम नए थे और तुम पुराने पड़ते जा रहे थे
हमें बहुत कुछ पाना था और  तुम्हें बहुत कुछ सहेजना था

इस पाने और सहेजने में तुम और हम
तुम और हम में ..............
जीवन ही रीत गया
जीवन ही बीत गया

तुम बार बार  याद आये /

शनिवार, 11 जून 2011

ममता बनर्जी के नए रूप

    ममता बनर्जी बंगाल के मुख्यमंत्री   के रूप में जो मास्टर स्ट्रोक़   लगा रहीं हैं वह सबको उन्हें शाबासी देने के लिये मजबूर कर रहा है / सत्ता में  आते ही उन्होंने हर मुद्दों के प्रति जिस सद इच्छा से काम करना आरम्भ किया है वह बंगाल के लिये बहुत शुभ है / चुनाव के पहले यह कहा जा रहा था कि ममता बनर्जी के हाथ में सत्ता आते ही सब चौपट हो जायेगा /  ममता में प्रशासानिक छमता  नहीं है वह सत्ता को संभल नहीं पाएंगी  पर ममता ने अपने प्रशासनिक निर्णयों से अपने विरोधियों के मुँह पर   ताला लगा दिया है जो लोग पहले उसकी आलोचना करते थे आज वह उसके काम करने के तरीके पर मुग्ध हैं /  अभी सिंगुर वाले  मुद्दे को उसने बड़ी जल्दी और दृढ़ता से हल करने की दिशा में  कदम बढ़ा  दिया है / दार्जलिंग का मुद्दा जो बंगाल के लिये इतने दिनों से सरदर्द बना हुआ था वह भी सुलझने के रास्ते पर चल पड़ा है / ममता का जो औचक निरीक्षण का अभियान चल रहा है  उससे सरकारी कर्मचारियों  की लेट लतीफी और मनमानी पर लगाम लगा है /  


ममता का रोज नित नया रूप देखने को मिल रहा है / अब आगे देखा जाये  कि इस नए रूप से बंगाल की काया पलट होती है कि  नहीं ?  

सोमवार, 6 जून 2011

सरकार का अलोकतांत्रिक कदम

 आखिरकार  बाबा रामदेव को सरकार ने गच्चा दे ही दिया / यह होना शत प्रतिशत  तय  था / पर हैरानी वाली बात यह है कि सरकार  आगे इस  मामले में  जिस तरीके से  आगे बढ़ रही थी अचानक उसने अपनी नीति में बदलाव क्यों कर लिया ? कल तक सरकार ने बाबा की आवाभगत की/ अपने मंत्रिओं को भेजकर  बाबा को मनाने की 
कोशिश की और अचानक बाबा पर लाठिया बरसाने का फैसला कर लिया ? बाबा को रामलीला के मैदान से हटाकर हरिद्वार भेज दिया  गया  / कल जिस तरीके से बाबा रामदेव के साथ सरकार ने बर्ताव किया है वह किसी भी तरीके से जायज नहीं है / आधी रात को  पुलिस जिस तरीके से सत्याग्रहियों और बाबा रामदेव पर टूटी है उसकी जितनी निंदा की जाये वह कम है /
क्या सरकार  इस मसले को दूसरे तरीके से हल नहीं कर सकती थी /  मुझे लगता है कि सरकार ने इस मसले को  दमन के जरिए  जिस तरीके से दबाने की कोशिश की है उससे बाबा रामदेव को दुनिया भर  के लोगो का   समर्थन ही मिला /  सरकार का यह कदम एक गलत फैसला है / उसने इस मुद्दे को हवा दे दी है / अब देखिए यह हवा आंधी बनती है या  इसकी हवा निकाल दे जाती है /  

गुरुवार, 2 जून 2011

भ्रष्टाचार : पहले अन्ना हजारे और अब रामदेव

 अभी देश के अख़बारों और समाचार चैनलों में जिस खबर को बड़ी खबर बताया जा रहा है और जिसे एक तरीके से प्रोमोट किया जा रहा है वह है  भ्रष्टाचार पर स्वामी रामदेव का  घोषित  सत्याग्रह / अभी कुछ दिनों पहले इस मुद्दे पर  अन्ना हजारे सुर्खियाँ बटोर रहे थे / अब इस मुद्दे पर बाबा रामदेव आगे आ चुके हैं/ जब अन्ना भ्रष्टाचार की नकेल कसने के लिये लोकपाल बिल में कुछ जरुरी नीतियों और कानूनों को शामिल करने के लिये  अनशन   पर बैठे हर थे और जिस तरीके से उन्हें जन समर्थन मिला उससे यह आशा बंधी कि शायद कुछ  बेहतर  रास्ते  निकल आएंगे और सरकार भी इस मुद्दे पर कुछ सचेत दिखी / पर आज की तारीख में आप  और हम देख सकते हैं कि  अन्ना  हजारे जहाँ खुद कह रहे हैं  कि सरकार ने हमसे बेइमानी की और हमें अँधेरे में रखा /  सत्ता पक्ष से आप   सीधी लड़ाई नहीं लड़ सकते हो / सत्ताएं अपने आप को सुरक्षित रखने के लिये तमाम तरीकों को इजाद करती हैं/  हम सब को याद है कि अन्ना हजारे ने लोकपाल बिल में जनता की तरफ से जन प्रतिनिधियों का जो दल बनाया  था    उसका क्या हस्र हुआ /


अब बाबा रामदेव इसी मुद्दे पर सत्याग्रह करने का  एलान  कर चुके हैं / ४ जून से अपने लाखों समर्थकों के साथ इसे अन्ना हजारे की तरह आन्दोलन का रूप देने जा रहे हैं / वैसे सरकार उनसे मिन्नत   कर चुकी है / खुद प्रधानमंत्री उनसे आग्रह कर चुके हैं कि हम इसे लेकर खुद ही गंभीर हैं आप सत्याग्रह पर मत बैठे/ कांग्रेस के सिपहसलार उन्हें मनाने एअरपोर्ट तक पहुँच गए  थे पर  बाबा रामदेव नहीं माने / वैसे देखा जाये तो अभी बाबा रामदेव मानेगें भी नहीं /  कारण सबको  मालूम है / 

एक सवाल यह भी उठता है कि हमारे हिन्दुस्तान में कोई भी आन्दोलन आजादी के बाद क्यों नहीं  सफल  हुआ ? एक बड़ा साफ़ कारण दिखलाई पड़ता है / असल में हम हिन्दुस्तानी जो भी परिवर्तन लाना कहते हैं वह दूसरों में लाना कहते हैं हम खुद उस परिवर्तन से अपने आप को अछूता रखते हैं /
हम चाहते हैं कि हमारे देश से भ्रष्टाचार मिटे पर खुद अपने आप से यह पहल नहीं करते / मैंने यह देखा था  कि जब अन्ना हजारे अनशन पर बैठे हुए थे तब जगह जगह उनके आन्दोलन को समर्थन देने के लिये मोमबत्ती लेकर पद यात्रायें की गई थी और उन यात्राओं में अधिकतर वे लोग शामिल थे जो खुद कहीं न कहीं कभी न कभी अपने आचरण में भ्रष्ट रहे थे / अगर  आप भ्रष्टाचार का अर्थ सिर्फ आर्थिक कदाचार लगते हैं तो आप बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी का शिकार हैं /  हम खुद बातें तो बड़ी बड़ी करते हैं पर जब मौका  मिलता है तो महज कुछ स्वार्थों के लिये हर प्रकार के  कदाचार के लिये तैयार हो जाते हैं / जब तक हम जो आन्दोलन के नाम पर एस. एम.एस  करते है , मोमबत्ती लेकर पदयात्रा करते हैं और अखबार में बिज्ञापन छपाते हैं , इन सब को छोड़कर अपने आचरण में बदलाव नहीं लायेंगे तब तक कोई भी आन्दोलन  सफल नहीं होने वाला है /

देखा जाये बाबा रामदेव का सत्याग्रह  क्या रंग लाता  है ?  उतरता है या चढ़ता है ? 


रविवार, 22 मई 2011

महिला शक्ति जय हो

अभी शुक्रवार को ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री के रूप में पश्चिम बंगाल की बागडोर को अपने हाथों में लिया है और गद्दी सँभालते ही उन्होंने जिस गति से पुरानी  लीक से हटते हुए काम काज करना आरम्भ किया है वह काबिले तारीफ है ममता बनर्जी के रूप में बंगाल को पहली बार  एक महिला मुख्यमंत्री मिली है जो अभी अपनी  साफ़ सुथरी छवि और माँ,  माटी और मानुष के प्रति हद से ज्यादा जागरूक है

ममता बनर्जी को अलग तरीके से काम करते देख कर यह तो जरुर लगता है कि पुरुषो की तुलना में महिलाएं   ज्यादा सक्षम होती हैं  और वे किसी भी दायित्वा  को   बड़ी  गंभीरता के साथ निभा सकती हैं महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज्यादा अनुशासित भी होती हैं

आज ममता बनर्जी महिला होते हुए भी जिस तरीके से एक लम्बा संघर्ष करते हुए आगे आई हैं तथा अपनी जड़ों को मजबूत किया है  वह अपने आप में  अतुलनीय है

बंगाल का  तख़्त जो उन्हें मिला है वह चुनौतिओं से भरा हुआ है लोगों की ढेरों  उम्मीदें उनसे लगी हैं लोग आशा से उनकी तरफ देख रहे हैं उन्हें लगता है कि ममता बनर्जी के हाथों में कोई जादू की छड़ी है जिसे वह घुमाते ही बंगाल की काया पलट कर देंगी /  अभी तो आगाज है देखे अंजाम क्या होता है  

रविवार, 15 मई 2011

भारतीय लोकतंत्र की जय हो

        अभी हाल ही में पांच राज्यों में चुनाव  संपन्न हुआ है और इस चुनाव में भारतीय लोकतंत्र की जय हुई है इस चुनाव के बाद यह साबित हो चुका है कि अब भारतीय लोकमानस सजग और जागरूक हो चुका है वह अपनी भूमिका से परिचित हो चुका है अब उसे कम करके आंकना बुद्धिमानी नहीं होगी आज वह जान चुका है कि भारतीय  राजनीति  को सही दिशा देने में उसकी एक सार्थक और गंभीर भूमिका है और वह अपनी इस भूमिका को बड़ी संजीदिगी ओर चुप्पी के साथ निभाता है इस बार के चुनावों में जनगण की चुप्पी से बहुत सारे राजनीतिक दल धरासायी  हो  गए उन्हें  यह अंदाज ही न रहा कि जनता क्या सोच  रही है अब इन दलों को जागना पड़ेगा और अपनी सोच को बदलना भी पड़ेगा/     जनगण से दूरी   सत्ता से बेदखल भी कर सकता है जनता को कम करके आंकना अब नहीं चलने वाला है /

एक और बात इस संदर्भ में देखना  लाजिमी है कि   जनता अब भ्रष्ट चरियों और भ्रष्टता को किसी भी कीमत पर सत्ता नहीं   सौ पेगी   / इसके साथ ही सत्ता के मद में डूबे राजनीतिक दलों को भी जनता सत्ता से दूर ही रखेगी यह तो अब तय हो चुका है /

आज  जरूरत  इस बात की है कि राजनीतिक दलों को अपना चरित्र बदलना पड़ेगा जनता से दूर जाकर कोई भी  नीति बनाने से सत्ता नहीं हासिल होगी. जनगण का सम्मान करना पड़ेगा जब जब जनगण को सत्ता द्वारा छल  और  अपमानित किया जायेगा तब तब सत्ता का तख्ता पलट होना  स्वाभाविक है /


भारतीय लोकतंत्र की जय हो

पांच राज्यों के चुनावों के नतीजे आ चुके हैं और इन नतीजों ने यह साबित कर दिया है कि भारतीय लोकतंत्र अब सजग हो चुका है और शक्तिशाली भी. उन राजनीतिक   दलों को अब सावधान हो जाना चाहिए जो जनता को कम करके आंकते हैं उन्हें मूर्ख मानते  हैं  आज जनगण बहुत सजग हो चुका है अब

रविवार, 8 मई 2011

ma tujhe salam

       माँ   तुझे सलाम

दर्द से कराहती वह
छट पटाती तड़पती
मृत्यु - शैय्या पर पड़ी
दिन गिन रही है ज़िन्दगी की
राह देख रही है मृत्यु की
जो उसे राहत देगी उस असहनीय  पीड़ा से
जो आजाद कर देगी उसे 
जीर्ण- शीर्ण कलेवर से
अनचाहे उदास , उखड़े हुए रिश्तों  से
अपनों - परायों से, गाँव -घर की स्मृतियों से /

वह भी साथ है में
जिसके साथ उसने
अपने जीवन के पैंतीस साल गुजारे थे 
साथ दिया था हर सुख में हर दुःख में /
 पर आज वह 
दवा की दो टिकिया दे 
अपना फर्ज निभा जाता है 
उसे फिक्र है उसकी गृहस्थी   
अब कौन संभालेगा ?
और वे सपूत
जो उसकी कोख से पैदा हुए  
 कहते  तो माँ हैं उसे
पर माँ के दुःख को अपना नहीं समझते /
उन्हें भी वक्त नहीं है आज
अपनी माँ के लिये 
वही माँ जो कल तक 
सब कुछ थी उनके लिये 
पर आज वे  डिस्टरब   होते हैं
माँ की कराह से 
परेशान होते हैं दवाइयों    की गंध से /
मन बेचैन है , व्यथित  है
शू न्य  में मनो 
माँ की आँखे सवाल करती हैं 
क्या खून पानी से भी पतला हो गया है ?    
  

बुधवार, 4 मई 2011

aatank ka sargana Laden khatam hua ?

             आतंक का सरगना लादेन ख़तम हुआ - इस पर विश्व के अधिकांश देश खुशियाँ मना रहे हैं पर सोचने वाली बात यह है कि क्या केवल एक लादेन के मारे जाने पर  आतंकवाद का सफाया हो जायेगा?  क्या आतंक के नाम पर  निरीह लोगो को मारने वाले चुपचाप बैठे रहेंगे ? आज जरुरत इस बात की है  कि विश्व के सारे देशों को आतंकवाद के मसले पर एकजुट होना पड़ेगा.  आज हम देख सकते हैं कि पाकिस्तान आतंकवाद के मुद्दे पर पूरे विश्व  से अलग थलग खड़ा है उसे यह अहसास तक नहीं है कि इस आतंकवाद को बढ़ावा देते देते वह खुद बारूद के ढेर पर बैठ चुका है आज हालात यह है कि अमेरिका उसकी ज़मीन पर आकर अपने खुफिया   मिशन को अंजाम दे देता है और पाकिस्तान को हवा तक नहीं लगने देता है यह पाकिस्तान को एक चेतावनी भी है पर कुछ देश होते हैं मूर्ख/ पाकिस्तान ऐसा ही है. जो अपनी संप्रभुता  को  दांव पर लगा चुका है  इस मामले में अमेरिका  को अपनी दादागिरी देखने को मौका भी मिला  और अमेरिका ने दुनिया  के सामने एक सीख़ भी रख दिया   कि अमेरिका अपने दुश्मनों  को किसी भी कीमत पर छोड़ता नहीं है 

 लादेन की मौत पर जायदा खुश होने की जरुरत नहीं है / अभी आतंकवाद के खिलाफ पूरे विश्व को एक लम्बी लड़ाई लड़नी है / इस लड़ाई में कुछ जरुरी मुद्दे हैं जिन पर भी विचार करना पड़ेगा /      

मंगलवार, 4 जनवरी 2011

सरकार की अड़ियल जिद

    जे  पी  सी की मांग पर जिस तरीके से  सरकार अड़ियल रवैया अपना रही है वह सरकार की मंशा  पर सवाल उठाती  है  आखिरकार सरकार इन घोटालो की जाँच करने के लिये जे पी सी की मांग को स्वीकार क्यों नहीं कर लेती ?  इस मांग को नहीं मानकर सरकार आख़िरकार समूचे विपक्ष को एकजुट और  शक्तिशाली  कर रही है  सिर्फ यही नहीं इस मुद्दे  को केंद्र करके संसद का पूरा शीतकालीन सत्र हंगामे की भेंट चढ़ चुका है  कभी कभी लगता है कि भारत की सरकार और विपक्ष  दोनों ही इस मुद्दे पर गंभीर नहीं हैं  और दोनों ही इस मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं /  हम सब  भ्रस्टाचार पर बात तो करते हैं  पर इसे लेकर हमारी भूमिका बहुत उदासीन होती है/ सरकार और विपक्ष की इस नकारात्मक भूमिका पर हम प्रतिवाद क्यों नहीं करते ?

रविवार, 2 जनवरी 2011

स्त्रीवादी साहित्य के मायने

आज सुबह अखबार में " प्रभा खेतान का स्त्रीवादी साहित्य सौंदर्य " नामक लेख पढ़ा  जिसे डॉ. जगदीश्वर चतुर्वेदी  ने लिखा है. दोस्तों आज उसी लेख को आपसे साझा करना चाहती हूँ.
 वैसे लेख तो बहुत बढ़िया है  पर लेख को पढने के दौरान मन में कुछ सवाल  उठते  हैं.लेख में लेखक का यह मानना है कि प्रभा खेतान का आत्मकथा  ' अन्या से अनन्या ' एक अर्थ में न्याय की तलाश है /  हममे से अधिकांश  लोगो ने इस आत्मकथा को पढ़ा होगा. मेरा मन यह सवाल करता है   कि प्रभा खेतान  अपनी आत्मकथा लिखकर किससे न्याय पाने की उम्मीद   कर रहीं थी ? क्या स्त्रिओं द्वारा अपनी आत्मकथा लिखने की पीछे न्याय पाने का एकमात्र मकसद  होता है  या कुछ और? जो स्त्रियाँ  आत्मकथा लिखती हैं  क्या वे सब न्याय पाने की आशा में लिखती हैं ?  स्त्रीवाद का लक्ष्य यदि न्याय पाना है तो प्रभा खेतान को क्या सचमुच न्याय मिला ?


उन्होंने दूसरी बात  यह लिखी है  कि किसी प्रेम सम्बन्ध में प्रेम तो औरत ही करती है, पुरुष तो प्रेम का भोग  करता है  पुरुष में देने का भाव नहीं होता, वह सिर्फ स्त्री से पाना चाहता है   इस बात को पूरी तरह स्वीकार नहीं जा सकता / ऐसी कोई बात नहीं है कि सभी स्त्रियाँ  प्रेम करती हैं  और सारे पुरुष मात्र प्रेम का भोग करते हैं / यह  चीजो का सरलीकरण   हैं/  आज की तारीख में ऐसी  स्त्रिओं की कमी नहीं है जो प्रेम में सिर्फ पाना ही चाहती हैं   प्रेम में देने के अधिकार पर मात्र औरतो का  जन्मजात  कब्ज़ा नहीं है  कुछ औरते तो मात्र लेने के लिये ही प्रेम का ढोंग करती है  फिर भी  इस लेख में कुछ बातें तो बिल्कुल सठीक  रूप में पकड़ी गईं हैं.  मसलन  प्रेम का मतलब कैर्रिएर बना देना , रोजगार दिला देना  , व्यापार करा देना देना नहीं है बल्कि ये तो ध्यान हटाने वाली रण नीतियाँ  हैं , प्रेम से पलायन करने वाली चालबाजियां  हैं प्रेम गहना, कैर्रिएर , आत्मा निर्भरता   अदि नहीं है   पर बहुत बारीकी से यदि देखा जाये  तो आजकल  इन सब चीजो को ही प्रेम कहा जा रहा है और इस व्यापार में पढ़े-लिखे और तथाकथित  बुद्धिजीवी  स्त्री और पुरुष दोनों शामिल हैं.

स्त्रीवादी साहित्य  के नाम पर जो  अपने दुखो और अपने साथ हुए धोखाधड़ी  को महिमामंडित करने की जो   कोशिश  प्राये: होती रही है    वहां न्याय  की तलाश तो नहीं की जाती है / मुझे नहीं लगता की  स्त्री जब अपनी आत्मा कथा लिखती है  तो ये सब सोचकर लिखती है