आज से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी तीन दिनों के लिये अनशन पर बैठकर एक नई राजनीतिक बिसात बिछा चुके हैं / उन्होंने इस अनशन को शुद्धिकरण का नाम दिया है पर राजनीतिक हलकों में इसके कुछ और अर्थ लगाये जा रहे हैं / तीन दिनों के अनशन के बाद नरेन्द्र मोदी का क्या नया अवतार होगा ? कहीं इसके पीछे कहीं कोई राजनीतिक मंशा तो नहीं छिपी है ? वैसे भी इन राजनीतिक नेताओं के हर कार्यकलापों के पीछे कोई न कोई राजनीतिक चालें छिपी रहती हैं / अभी इन नाटकों को देखकर लगता है कि देश में अनशनों का फैशन चल पड़ा है / अनशन जैसे कारगार हथियार का अगेर इसी तरह इस्तेमाल होता रहा तो यह हथियार भी एकदिन भोथरा हो जायेगा /
शनिवार, 17 सितंबर 2011
सोमवार, 5 सितंबर 2011
गाँव
गाँव , तुम कहाँ खो गए ?
बरसों जहाँ तुम्हें छोड़ आई थी
तुम वहां तो नहीं हो !
पर
मेरी स्मृति के उजले पन्नों पर
इतिहास
के पुराने खंडहरों की तरह दर्ज हो /
जहाँ अवकाश पाते ही
मन लम्बी छुट्टियों पर चला जाता है
तलाशने लगता है
कुछ विस्मृत हुए लोगों को /
दोहराने लगता है
कुछ भूले हुए किस्सों को
भूले हुए अनगिनत चेहरे
फ़िल्म की रील की तरह
चलने लगते हैं /
बूढी आजी , बाबा , वह महुआ का पेड़
आम का बगीचा , माटी की सोंधी गंध
वह चार बीघा खेत, वह अपना आँगन , वह दुआर /
कहते हैं लोग कि
अब तुम नहीं रहे
पर विश्वास नहीं होता
गांव तुम मर नहीं सकते /
हर पल तो तुम्हें
अपने सीने में धड़कता हुआ पाती हूँ
कैसे कहूँ कि तुम नहीं रहे ?
बरसों जहाँ तुम्हें छोड़ आई थी
तुम वहां तो नहीं हो !
पर
मेरी स्मृति के उजले पन्नों पर
इतिहास
के पुराने खंडहरों की तरह दर्ज हो /
जहाँ अवकाश पाते ही
मन लम्बी छुट्टियों पर चला जाता है
तलाशने लगता है
कुछ विस्मृत हुए लोगों को /
दोहराने लगता है
कुछ भूले हुए किस्सों को
भूले हुए अनगिनत चेहरे
फ़िल्म की रील की तरह
चलने लगते हैं /
बूढी आजी , बाबा , वह महुआ का पेड़
आम का बगीचा , माटी की सोंधी गंध
वह चार बीघा खेत, वह अपना आँगन , वह दुआर /
कहते हैं लोग कि
अब तुम नहीं रहे
पर विश्वास नहीं होता
गांव तुम मर नहीं सकते /
हर पल तो तुम्हें
अपने सीने में धड़कता हुआ पाती हूँ
कैसे कहूँ कि तुम नहीं रहे ?
शनिवार, 3 सितंबर 2011
मुबारकें
तेरे दिल में कोई और घर कर गया
तुझसे कैसे अब मैं मुबारकें लूँ ?
कभी मंजिल हमारी एक थी
आज राहें जुदा हैं
तू रह अपने हमसफ़र के साये में
मैं भी अब तनहा एक सफ़र में हूँ /
तू मुबारकों में रह आमीन
मैं अभी बद्ददुआवों के सायों में हूँ/
तू चलाचल अपनी आरजूओं की मिन्नत में
ख्वाहिशों की बंदगी कर
मैं अभी जिंदगी वीराने के बसर में हूँ /
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