शनिवार, 23 जुलाई 2011

बेटियां

  बरसों बाद बेटी मायके लौटी है

घर - आँगन हंस - बोल रहा है
 दुआर पर पगुरा रहा बैल भी

हरिया  गया है /

बेटी आई है
घर तो गमकेगा ही
पलास की तरह
बेटी की हुलास में /

बेटियां होती ही ऐसी हैं
जहाँ जाती हैं वहीँ गांठ लेती हैं
संबंधों के  नए -नए डोर /

अंखियों का पनिया जाना !

      इन अंखियों का क्या करूँ ? सखी !
      जो बात -बात में पनिया जाती हैं 

       मनवा भी इन्हीं का साथ देता है 
                    सुनता ही नहीं है 
      राह जोहता है , बाट निहारता है उनकी
                  जो आने वाले नहीं हैं /


कैसे  समझाऊँ  सखी ?
यह मनवा न जाने कहाँ हिरा जाता है ?
बीते दिनों के उजाड़ वन में
फिर थक- हार कर लौट आता है
और अँखियाँ फिर
       पनिया जाती हैं सखी !

बुधवार, 20 जुलाई 2011

एक वृक्ष की हत्या

        अबकी  बार घर लौटा तो देखा वह नहीं था --
               वही    बूढ़ा चौकीदार वृक्ष
      जो हमेशा मिलता था घर के दरवाजे पर तैनात /

               पुराने चमड़े का बना उसका शरीर
                     वही सख्त जान
            झुरिर्योदार  खुरदुरा ताना  मैला  कुचला  ,
                  राइफिल - सी डाल,
               एक पगड़ी फूल पत्तीदार ,
             पावों में फटा पुराना जूता
          चरमराता  लेकिन अक्खड़ बल  बूता

धुप में बारिश में
गर्मी में सर्दी में
हमेशा चौकन्ना
अपनी खाकी वर्दी में

दूर से ही  ललकारता " कौन ?"
मैं जवाब देता , " दोस्त "
और पल भर को बैठ जाता
उसकी ठंडी  छाव में


दरअसल शुरू से ही था हमारे अंदेशों में
कहीं एक जानी  दुश्मन
 कि घर को  बचाना  है लुटेरों से
शहर को  बचाना है  नादिरों से
देश को बचाना है देश के दुश्मनों से

बचाना है ----
                            नदियों  को नाला हो जाने से
                            हवा को धुवां   हो जाने से
                            खाने को जहर हो जाने से


बचाना है - जंगल को मरुथल हो जाने से
बचाना है - मनुष्य को जंगल हो जाने से /


                                       -------      कुंवर नारायण

गुरु -शिष्य

किसी राज्य में पंडित वेद शर्मा नामक विद्वान रहते थे / उनकी विद्या की ख्याति दूर -दूर तक फैली थी /उनके पास राजा   वितंडवाहंन के पाँच राजकुमार विद्या  प्राप्त करते थे / राजकुमारों की शिक्षा जब समाप्त हुई , तब गुरु ने कहा - " शिष्यों , अब मैं  तुम्हारी परीक्षा लूँगा /"

 पाँचों राजकुमारों को  बिठाकर गुरु ने प्रश्न- पत्र  दे दिया / वे उत्तर लिखने लगें / गुरु बारी-बारी से हर राजकुमार  के पास जाकर देख रहे थे/ चार कुमारों को देखकर जब वे  पाँचवे   के पास पहुँचें तो देखा कि  वह  कुंजी में से नकल  कर रहा है /

 गुरु ने कहा - '' वत्स, यह कुंजी तूने कहाँ से प्राप्त की ?"

 कुमार ने कहा - " गुरुदेव, इसे मैं आपकी टेबल पर से उठा लाया था /"

यह सुनकर गुरु बहुत प्रसन्न हुए और उसे प्रथम घोषित  कर दिया /

                 ---------   हरिशंकर परसाई 

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

मुंबई आख़िर कब तक दहलती रहेगी ?

  फिर से एक बार मुंबई को बम विस्फोटों से आतंकवादियों ने थर्रा दिया है / आख़िरकार यह कब तक चलेगा? कब तक हमारी सरकार इन विस्फोटों पर चुप्पी साधे रहेगी ? कब तक बेगुनाह लोग इन हमलों में अपनी जान देते रहेंगे? सबसे बड़ी बात यह है कि हम इन विस्फोटों  को झेलने के आदी हो चुके हैं. विस्फोट होने पर कुछ दिन तो हम सुगबुगाते  हैं पर फिर वही चुप्पी और लापरवाही को ओढ़ लेते हैं