शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

कल  करवा  चौथ था /  दाम्पत्य  प्रेम के बंधन को आस्था के डोर से बाँधने वाला व्रत / हम औरतें  अपने पतियों या प्रिय के लिए , उसके सुख - समृधि  के लिए , उसकी आरोग्यता के लिए      निर्जला  उपवास रखतीं हैं / हम तो अपना सारा जीवन अपने पतियों के लिए वारती  हैं/पर बहुत  कम पति इस बात को समझ पाते  हैं /  हम औरतें भी अजीब हैं / किसी  को अपना मान लिया तो बस मान लिया और वह लाख चाहे उसकी परवाह न करता हो पर इससे  हम पर कोई फर्क नहीं पड़ता /  हम औरतें  इस मायने में बहुत मजबूत और  दृढ होती हैं / कल  का दिन हमारे प्रेम के परीक्षा का भी था / मैंने तो अपना फर्ज निभाया /  सारा दिन  चाँद के प्रेम में उपवास रखा / उसकी प्रतीक्षा करते - करते  रात के साढ़े आठ बज गए / तब जाकर चाँद देवता मुस्कराते हुए उदित हुए / चाँद देवता  ही तो आज के दिन आराध्य  होते हैं / दूर आकाश में बादलों की ओट में छिपे आखिरकार चाँद देवता अपनी  आराध्याओं   पर  प्रसन्न  होकर  सामने आये /  चाँद देवता ने तो अपनी टेक निभाई  पर .........../  आस्था , विश्वास , प्रेम , ......... मिट नहीं सकते / इस व्रत की यही तो महिमा है /  हमारी संस्कृति  यही सिखाती है /  आस्था रखो / इससे बड़ा बल कोई नहीं है/               

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें