सोमवार, 1 अप्रैल 2013

रामअवध उदास है

रामअवध उदास  है 
सोच रहा है 
कैसा भयावह समय है 
कवि और सत्ता में 
कितना बेहतर  तालमेल है 


हमारा कवि चिंतित होता है 
अपनी कविताओं में 
हमारी भूख को लेकर/
हमारी पीड़ा उसे बेचैन करती है 
हमारे संघर्ष में वह
उबाल ख़ाता है गर्म लहू की तरह /

वह बार - बार क्रांति की बात करता है 
सत्ता को आँखें तरेरता है /

हम खुश होते हैं 
कोई तो है जो 
हमारे लिए प्रतिबद्ध है 
हमारी लड़ाई में कहीं  कहीं शरीक है /

पर एक दिन पता चलता है 
हमारे समय की निरंकुश सत्‍ता एँ
पुरस्कार बाँट रही हैं 
हमारा कवि 
पुरस्कारों को सर झुका कर 
ग्रहण कर रहा है 
कवि अभिभूत है 
सत्ता का आतिथ्य ग्रहण करके /
प्रशस्ति गा रहा है 
कृत  हो रहा है 
आख़िरकार सत्ता ने 
उसकी पहचान कर ली है /
कवि जानता है
पहचान ज़रूरी है :
लड़ाई नहीं /
पहचान से ही 
रास्ते खुलेंगे 
इतिहास में दाखिल होने के लिए /
कवि बेचैन है 
सत्ता मुग्ध है 
पर रामअवध उदास है 
वह इतिहास नहीं बनना चाहता /