बुधवार, 3 नवंबर 2010

Nai Subah : Samaj ke patanshil chehre ka aaiena

 दोस्तों , आज फिर से आपके सामने डॉ. शंकर तिवारी के उपन्यास नयी सुबह को लेकर कुछ बातें शेयर करना चाहती हूँ. यह उपन्यास शंकर तिवारी का पहला उपन्यास है पर पहला उपन्यास होने के बावजूद पठनीयता और अपने समय के जरुरी सवालों को उठाने  की दृष्टि से  अति महत्वपूर्ण है  यह उपन्यास  भारत   की राजनीति    के असली चेहरों  को सामने तो लाता ही है उसके अलावा 1972 से लेकर 2009 तक भारत की राजनीति में कौन से परिवर्तन आएय और हमारे देश का राजनीतिक चरित्र किस तरीके से बदलता रहा है इन सबका उपन्यासकार ने बिना किसी राजनीति में पड़े उसका खुलेआम वर्णन किया है यहाँ लेखक ने साहित्य की दृष्टि से भारत की राजनीति को उपन्यास के कैनवास पर उतारा है
इस उपन्यास का नायक राजीव है जो बिहार के एक छोटे से ग्राम का युवक है   वह किसांन  परिवार का होनहार लड़का है उसे लेकर घरवालो के अनेक सपने हैं पर राजीव के सपने थोड़े अलग हैं. वह जयप्रकाश के द्वारा चलाये गये  आन्दोलन में शामिल होता है तथा देश के लिये कुछ करने का जज्बा पालता  है जेल भी जाता है पर १९७५ में जब आपातकाल के बाद सत्ता बदलती है तब राजीव यह देख कर की जनता पार्टी की सरकार भी वैसे ही भ्रस्ता है जैसे कांग्रेस की सरकार थी यहाँ राजीव का मोहभंग होता है और वह राजनीति से मुँह मोड़कर जीवन की एक नयी दिशा में चला जाता है
वह कोलकता   चला आता है और अपनी छोड़ी गई पढाई को फिर से नए   सिरे से आरम्भ करता है और यहाँ देश के शिक्षा  वयवस्था के यथार्थ पर लेखक रौशनी डालता है

इस उपन्यास में एक प्रेम की कहानी भी है जो पाठको का ह्रदय स्पर्श करती है  मुझे लगता है की हर संवेदनशील पाठक को इस उपन्यास को पढना चाहिए

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