गुरुवार, 11 नवंबर 2010

kashmir se judi kuch batein (2)

         अंग्रजो  ne  इस  राष्ट्रवादी लहर को रोकने के लिये एक रणनीति बनाई  और यह निर्णय किया की कश्मीर में मुस्लिमो की बड़ी जनसँख्या का लाभ लेने के लिये किसी शक्तिशाली मुस्लिम नेता को जनम दिया जाये  संयोग से उस समय अलीगढ़   विश्वविद्यालय से एम्. ए पास कर के एक नयुवक    आया था जो यदपि शिक्षक  की नौकरी कर रहा था लेकिन उसमें राजनीतिक  मह्त्वाकंछा     बहुत अधिक थी उस युवक्  का नाम था शेख अब्दुल्ला / ब्रिटिश सरकार ने इस युवक्  पर अपनी नजर केंद्ररित  कर दी /शेख अब्दुल्ला प्रारंभ से ही सांप्रदायिक प्रवृति का व्यक्ति था इसलिये ब्रिटिशो को माहाराजा के विरुद्ध भड़काने के लिये एक अंग्रजी पढ़ा लिखा व्यक्ति मिल गया यदपि वह गुलाम अबबास चौधुरी की मुस्लिम कांफ्रेस की ओर आकर्षित था, लेकिन मह्त्वाकंअछि अब्दुल्ला को यहाँ अपना भवइष्य    अधिक सुनहरा नजर आया . परिस्थितिया ऐसी तैयार होती चली गई  की शेख अब्दुल्ला ने अपनी खुद की नेशनल कांफ्रेस नामक पार्टी बना डाली कट्टरवादी  अब्दुल्ला राजा हरी सिंह का विरोधी तो था ही उसने भारत छोड़ो की नारे की तरह १९४६ में महाराजा के विरुद्ध कश्मीर छोड़ो आन्दोलन शुरू  कर दिया. महाराजा ने शेख और उसके साथिओ को गिरफ्तार कर लिया. महात्मा गाँधी ओर सरदार पटेल के विरोध के बावजूद पंडित जवाहरलाल नेहरु ने मराराजा से शेख को छओड   देने  की अपील की . यही नहीं उन्होंने कश्मीर आकर शेख का मुकदमा लड़ने की घोषणा भी कर दी . महाराजा  ने नेहरु के कश्मीर प्रवेश  पर रोक लगा दी थी प्रवेश करते हुए महाराजा ने नेहरु को गिरफ्तार भी कर लिया नेहरु महाराजा  की इस कार्यवाही पर जल भुन गए  यहीं से कश्मीर समस्या का अंकुर फूटा  इसे हल करने में नेहरु ने अपनी मान मर्यादा को दाव् पर लगा दिया आज जो कुछ हम देख रहे हैं वह केवल महाराजा   के विरुद्ध  में एक हुए अब्दुल्ला और नेहरु का पैदा किया हुआ विष है.

भारत के आजाद हो जाने के पश्चात भी जिन्ना ने महाराजा हरी सिंह का पीछा नहीं छोड़ा  कभी उनके अपहरण की योजना बनाई तो कभी खाने में विष पहुचाया इसके बावजूद जब हरी सिंह को अपने राश्ते से नहीं हटा पाए तो २० अक्टूबर १९४७ को पाकिस्तान के मेजर  जनरल अकबर खान ने कबाइली सेना की आड़ में कश्मीर पर हमला कर दिया महाराजा की सेना पाक सेना की तुलना में बहुत कम  और कमजोर थी / निराश महाराजा ने २४ अक्टूबर को ही भारत सरकार के समूख  कश्मीर के विलय का प्रस्ताव रख दिया. २७ अक्टूबर  १९४७ को प्रस्ताव स्वीकृत किया गया

सरदार पटेल के विरोध के बावजूद पंडित नेहरु ने सेना की कमान शेख को सौप दी जिसने अपने प्रभाव वाले छेत्र को ही ध्यान में रखा भारतीय सेना दो तिहाई भाग को जीत  चुकी थी, लेकिन शेख ने सेना को रोक कर गिलगित की और मोड़ दिया जिसका नतीजा यह आया की पाकिस्तान के कब्जे में आज भी भारत का ७८,११४ वर्ग किलोमिटर  छेत्र है जहाँ भारत पर आतंकवादी हमले करने के लिये आतंकी प्रशिक्षण शिविर चलाते हैं / "  इस लेख को आप सभी पढ़ कर विचार करे

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें