रविवार, 20 नवंबर 2011

केदारनाथ सिंह की एक कविता

    इस शहर को इसकी  नींव की सारी
            ऊष्मा समेत
           यहाँ से उठाओ
      और रख दो मेरे कंधे पर
मैं इसे ले जाना चाहता हूँ किसी  मेकेनिक के पास

        मुझे कोई भ्रम नहीं
 कि मैं इसे ढोकर पहुंचा दूंगा कहीं और
     या अपने किसी करिश्मे से
     बचा लूँगा इस शहर को

      मैं तो बस इसके कौओं को
       उनका उच्चारण 
      इसके पानी को
     उसका पानीपन
     इसकी त्वचा को
उसका स्पर्श  लौटाना चाहता हूँ

मैं तो बस इस शहर की
लाखोंलाख  चींटियों की मूल रुलाई का
हिंदी में अनुवाद करना चाहता हूँ / 

2 टिप्‍पणियां:

  1. केदारनाथ सिंह की कविताएं समय के साथ संवाद करती हुई कविताएँ हैं । सटीक कथ्य!
    इस कविता के माध्यम से आपने बहुत सुन्दर तरीके से कवि और उसके रचनाकर्म से अच्छी तरह से परिचित कराया है । उनकी कविता 'नए कवि का दुःख' कितनी सुन्दरता से संवाद करती हुई हृदय को झकझोरती है-
    "दुख हूँ मैं एक नये हिन्दी कवि का"

    बाँधो
    मुझे बाँधो
    पर कहाँ बाँधोगे
    किस लय, किस छन्द में?

    ये छोटे छोटे घर
    ये बौने दरवाजे
    ताले ये इतने पुराने
    और साँकल इतनी जर्जर
    आसमान इतना जरा सा
    और हवा इतनी कम कम
    नफरतयह इतनी गुमसुम सी
    और प्यार यह इतना अकेला
    और गोल -मोल
    बाँधो
    मुझे बाँधो
    पर कहाँ बाँधोगे
    किस लय , किस छन्द में?

    क्या जीवन इसी तरह बीतेगा
    शब्दों से शब्दों तक
    जीने
    और जीने और जीने ‌‌और जीने के
    लगातार द्वन्द में?
    (-केदारनाथ सिंह)

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