शनिवार, 26 नवंबर 2011

भारतीय लोकतंत्र आखिरकार कहाँ जा रहा है ?

आज- कल हिंदुस्तान में जो घट रहा है वह वाकई यह सोचने पर मजबूर कर रहा है कि आखिर हमारे देश में लोकतंत्र को सही दिशा कब मिलेगी ?  अभी हाल में कुछ घटनाएं ऐसी घटी हैं  जिसका किसी भी रूप में समर्थन नहीं किया जा सकता है / कुछ दिनों से इस देश में    अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर या विरोध के नाम पर किसी पर जूते  फेंकना  , जूते दिखाना , थप्पड़  मारना आदि  ऐसी असामाजिक हरकतें हो रही हैं  जो लोकतंत्र में आस्था रखनेवालों को और उनको भी जो अपने आपको सभ्य समाज का नागरिक मानते हैं , कुछ सोचने पर मजबूर करतीं हैं / यहाँ  सिर्फ सोचना ही नहीं है बल्कि ऐसी घटनाओं का पुरजोर विरोध होना चाहिए / हर राजनीतिक पार्टी का अपना एक  अजेंडा होता है /उसकी अपनी नीतियाँ होती हैं /अगर उसकी नीतियाँ गलत हैं तो उसका विरोध होना चाहिए / पर विरोध के नाम पर किसी को थप्पड़ मारना या उस पर जूते चलाना कहाँ तक जायज है ? अगर आक्रोश है तो किसी एक व्यक्ति पर वह क्यों निकले ? लोकतंत्र में विरोध के और भी तरीके हैं / भ्रष्टाचार और महंगाई के खिलाफ इस प्रकार का आक्रोश हमें कहाँ ले जायेगा ? क्या इससे कोई राह निकलेगी?

अब एक अन्य मुद्दे पर आपलोगों से कुछ साझा करना चाहती हूँ / अभी हमारे कुछ राज्य  माओवाद से लगातार  जूझ और निपट रहे हैं / अब तक हजारों सुरक्षा कर्मी , पुलिस कर्मी ,निर्दोष लोग इस माओवाद की हिंसक कार्रवाइयों  में अपने  प्राण गवां चुके हैं / अभी किशन जी को एक मुठभेड़ में मार  गिराया गया है /अब देखिये उसको लेकर देश में राजनीति होनी शुरू हो गई है / इसको राजनीति का रंग दिया जाने लगा है / अब देखिये इसको लेकर मानवाधिकारों की बात होने लगी है / अरे भाई ! जब निर्दोषों को माओवादी मार रहे थे तब मानवाधिकार कहाँ तेल लेने चला गया  था ? उस समय किशनजी या   माओवादिओं को आपलोगों ने क्यों नहीं समझाया कि निर्दोषों को मारना भी मानवधिकार का उल्लंघन  है /  

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