शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

मुक्ति 

उसने मुझसे  कहा-
मैं तुम्हें  मुक्त करती हूँ
अपने रिश्तों से ,
अपनी  चिंताओं  से
अपने प्यार से /

सोचता हूँ
मुक्त करना
क्या सचमुच मुक्त करना होता है ?
kabhi  मुक्तिबोध ने कहा था
मुक्ति कभी अकेले की नहीं होती /
 इसलिए कहाँ  हो पाते  हैं  हम मुक्त ?

हम- तुम एक दूसरे से
अलग होकर
अलग -अलग   दिशाओं  में
मुक्ति की तलाश करते रहे
और
एक दूसरे को मुक्त करने का
स्वांग  भरते रहे /
पर जितना भी स्वांग  भरे
मुक्त होना संभव  नहीं है
क्योंकि
रिश्तों से, चिंताओं से , प्यार से
मुक्त होना
शायद  हमारे मरने  की
निशानी होगी /

1 टिप्पणी:

  1. आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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