शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

अधेड़ होती स्त्री

अधेड़ होती स्त्री 
अब अपने बारे में ज्यादा नहीं सोचती 
सोचना उसने अब बंद कर दिया है /
चुपचाप धीमे - धीमे वह 
सबकुछ स्वीकारती चली जा रही है 
जानती है वह
 कि अब वह धीरे- धीरे चुक रही है /
अब वह अपने बारे में ज्यादा नहीं सोचती  
सोचना उसने अब बंद कर दिया है /
खुला रहता है उसके घर का दरवाजा 
पर बंद रहता है उसके मन का किवाड़ 
उसे पता है  कि
लोग भी अब उसके बारे में नहीं सोचते /
वह कटती जाती है अपने आस- पास से 
अधेड़ होती स्त्री 
घिरती जाती है 
एक सन्नाटे में 
जो उसका अपना होकर भी 
उसका नहीं होता/
वह बिनती रहती है 
कुछ लम्हों को , कुछ पलों को 
स्मृतियों की पुरानी पड़ती जा रही कोटर से
कुछ चेहरों को झाड़ती-   पोंछती    रहती है 
वापस सहेज कर रखने के लिए /
अधेड़ होती स्त्री 
अब अपने बारे में ज्यादा नहीं सोचती / 

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