शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

कविता पढ़ते हुए

न जाने क्यूँ मैं कविता पढ़ते हुए 
उदास हो जाता हूँ ?
कविता की दुनिया में 
मेरे हिस्से का दुःख 
अक्सर खड़ा मिल जाता है /
अपने सन्नाटे से बचने के लिए 
मैं कविता की दुनिया में दाखिल 
होता हूँ पर वहां वह सन्नाटा 
भी अकेलेपन की चादर  ओढ़े 
खड़ा रहता है मेरे इंतज़ार में /
पता नहीं कविता में इतना दुःख 
किसने लाकर चुपके से रख दिया है 
और अकेलापन   लुकाछिपी 
खेलते हुए आ दुबका है 
कविता की  ओट में किसी  बच्चे  की तरह/
कभी हमने रचा था कविता को 
अपने दुःख से बचने के लिए 
सन्नाटे के बीहड़पन से 
उबरने के लिए 
पर पता नहीं क्यों ?
मुझे लगता है
 शायद दुःख और सन्नाटे से 
बचना मनुष्य की सबसे 
नासमझ चेष्टा है/ 

4 टिप्‍पणियां:

  1. इस कविता की व्याख्या नहीं की जा सकती। कोई टीका नहीं लिखी जा सकती। सिर्फ महसूस की जा सकती है।

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    1. kavita vyakhya ya tikka ke liye nahi likhi jati hai wah to sirf baichaini aur pida se janam leti hai

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  2. शायद दुःख और सन्नाटे से
    बचना मनुष्य की सबसे
    नासमझ चेष्टा है/

    बहुत ही भाव प्रवण कविता । मेरे पोस्ट "भीष्म साहनी" पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा ।धन्यवाद ।

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