शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

भाषा आन्दोलन : नव राष्ट्र का जन्म -- डॉ. शंकर तिवारी ( २)

    १४ अगस्त ,१९४७ में पाकिस्तान  के जन्म के बाद ही पूर्वी  पाकिस्तान की जनता में रोष शुरु हो गया था जब उन्हे  पता चला कि पाकिस्तानी सरकार इस मामले में कट्टर   नीति  अपनाने जा रही है / पाकिस्तान के संस्थापक और प्रथम गवर्नेर  जनरल  मिस्टर . जिन्ना ने आजादी के बाद ही ढाका के ऐतिहासिक   रेसकोर्स   मैदान  में आयोजित विशाल  जनसभा को संबोधित करते हुए यह उदघोषित किया - "urdu and only urdu shall be the state language of pakistan" ऐसी   उदघोषण   से लाजिमी  है कि पूर्वी पाकिस्तान की  बहुसंख्यक   जनता के माथे पर चिंता की   लकीरें पड़नी  ही थी / इसके खिलाफ  अब जनता को कमर कसना था / सबसे पहले सन १९४७ के दिसम्बर  महीने में ' राष्ट्र भाषा संग्राम परिषद् ' का गठन हुआ / अपनी भाषा की अस्मिता के लिये आन्दोलन की रुपरेखा बनने लगी थी / पाकिस्तान के निर्माण के छे महीने बाद पाकिस्तानी असेम्बली के प्रथम अधिवेशन  की बैठक २३ फ़रवरी ,१९४८ को आरंभ  हुई / इसी अधिवेशन में पूर्वी पाकिस्तान के प्रतिनिधि वीरेन्द्रनाथ  दत्त ने एक प्रस्ताव पेश किया - उर्दू व् अंग्रेजी के साथ बाँग्ला भाषा को  भी सरकारी राजकाज की भाषा घोषित किया जाये / तत्कालीन  प्रधानमंत्री  लियाकत  अली इस प्रस्ताव पर काफी क्षब्ध हुए थे / उन्हें  यह भ्रम था कि इससे  पाकिस्तानी जनता के बीच असंतोष पैदा होगा/ वे यह भूल गए थे कि पूर्वी पाकिस्तान की जनता हिन्दू और मुसलमान होते हुए भी भाषाई दृष्टिकोण  से बाँग्ला भाषा की पक्षधर   थी / आंकड़ों के आधार पर सन १९५१ में बोलचाल की भाषा बाँग्ला थी/

                   वीरेन्द्रनाथ  दत्त  का स्पष्ट तर्क था कि केवल  उर्दू व् अंग्रेजी के प्रयोग से पूर्वी पाकिस्तान की जनता को बेहद  मुश्किलातों का सामना करना पड़ेगा / एक साधाराण    किसान  म्नीअओएर्दर मनीओडर  फार्म पर अंकित भाषा को कैसे समझ पायेगा ? जमीन  बेचने व् खरीदने के क्रम में  स्टांप पेपर  पर कितने रुपए की राशि लिखी हुई है ? - यह समझना  मुश्किल होगा / जनता के मन में यह सवाल  बेचैनी  पैदा किए हुए था कि अंग्रेजी को  राजभाषा का अधिकार मिल गया  लेकिन ४ करोड  चालीस लाख  लोगो की  मातृभाषा  बाँग्ला को राजभाषा  के अधिकार से वंचित क्यों कर दिया गया ?
 यदपि वीरेन्द्रनाथ के प्रस्ताव के समर्थन में दो अन्य सदस्यों ने भी  सहमति दर्ज की थी / भूपेंद्र नाथ दत्त  ने इस प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा था -   ' ' urban is not the language of any of the provinces constituting the dominion of pakistan.It is the language of the upper few of western pakistan.This opposition to the amendment proves an effort, a determined effort on the part of the upper few of western pakistan at dominatng the state of pakistan.This is certainly not a tendency towards democracy.It is tendency towards domination of the upper few of a particular region of the state."

पर इसके बावजूद २५ फ़रवरी ,१९४८ को राष्ट्रीय असेम्बली में यह प्रस्ताव अस्वीकृत हो गया /इस प्रस्ताव के खिलाफ मुस्लिम लीग  के सदस्यों  ने राय दी  और यह प्रस्ताव ख़ारिज हो गया/ पूर्वी पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री ख्वाजा नाजिम्मुद्दीन  जो ढाका के नवाब  परिवार के उर्दू भाषी संतान थे, ने कहा था - ' पाकिस्तान  के विभिन्न क्षत्रों में संपर्क भाषा के रूप में उर्दू का कोई विकल्प नहीं है/" उर्दू का समर्थन और बाँग्ला को नजरअन्दाज करना -  - यहीं से शुरु हुआ भाषाई अस्मिता का आन्दोलन जिसकी परिणती  के रूप में पाकिस्तान का एक और बंटवारा हुआ और बांग्लादेश अस्तित्व में आया / धर्म के आधार  पर दो मुल्कों का गठन -- कितना असंगत  और तार्किकता से परे था, बांग्लादेश के निर्माण ने सिद्ध कर दिया /

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