शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

भाषा आन्दोलन : नव राष्ट्र का जन्म -- डॉ. शंकर तिवारी ( 4)

अब यह आन्दोलन थमने वाला नहीं था / ११ मार्च, १९४८ को सारे पूर्वी पाकिस्तान में आम हड़ताल  बुलाई गई/ जगह -जगह  जुलूस  निकले गए / नारे  दिए गए /


इसी  हड़ताल में पुलिस ने भी अपनी बर्बरता  का परिचय  दिया /   आन्दोलनकारियों   और भाषा प्रेमियों पर   लाठीचारज  कार्य गया/ इस आन्दोलन की तीब्रता को कम करने के लिये पूर्वी पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नाजिमुदीन  ने ढाका के असेम्बली में अधिवेशन के दौरान  बाँग्ला को सरकारी भाषा और शिक्षा का माध्यम बनाने का  आश्वासन दिया/ इसके बाद  असेम्बली में ६ अप्रैल. १९४८ को इसके लिये एक प्रस्ताव फिर से लाया गया पर स्थित्ति  वही   ढाक के तीन पात/ प्रस्ताव का फिर से विरोध हुआ/ इधर छात्रों और नवयुवकों में  आक्रोश  बढ़ता ही जा रहा था/   भौगोलिक दृष्टि से पूर्व पाकिस्तान और पश्चिम पाकिस्तान में हजारों किलोमीटर की दूरी थी/ उनके बीच में संपर्क के लिये समुन्द्र पथ और आकाश -पथ के अलावा कोई राष्ट नहीं था / पश्चिम पाकिस्तान का ही पूरे  पाकिस्तान पर दबदबा था/ पश्चिम पाकिस्तान वाले पूर्वी पाकिस्तान  को अपना उपनिवेश  समझते थे पूर्वी पाकिस्तान में कच्चे माल का उत्पादन होता था और पश्चिम पाकिस्तान के कारखानों में बाज़ार की जरुरत के मुताबिक उत्पादन होता था इस स्थिति  पर सुहरावर्दी साहेब मजाक में हमेशा कहा करते थे -' The common bondage between east and west pakistan is P.I.A and myself'  दरअसल ' मुस्लिम -मुस्लिम भाई- भाई' - इस नारे के सिवाय पूर्वी और  पश्चिम पाकिस्तान में कोई सेतुबंधन नहीं था/ पूर्वी पाकिस्तान का एक तो शोषण और दूसरा उनकी भाषा की उपेक्षा - पूर्वी पाकिस्तान को  पश्चिम पाकिस्तान से अलग व् स्वतंत्र होने का वाजिब कारण था /

  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें