कहीं पढ़ा था कि किसी को समझाना बहुत आसान है पर अपने आप को समझना बहुत मुश्किल है । उम्र गुजर जाती है पर हम अपने आप को समझ नहीं पाते । अपने आप को जान नहीं पाते । उम्र की सारी पूंजी दूसरों को समझने और समझाने में खर्च कर देते हैं और अपने आप को उपेक्षित छोड़ देते हैं । बिना अपने आप को जाने समझे एक जिंदगी गुजार देते हैं । किसी जिंदगी का यूँ ही गुजर जाना कितनी बड़ी त्रासदी है । कभी सोचती हूँ कि अगर जीवन में त्रासदियां नहीं होती तो जीवन कैसा होता ? शायद नमक विहीन समुद्र जैसा । नमक न हो तो फिर जीवन कैसा ? नमक है तो जीवन है । जीवन से नमक का चला जाना भी तो अपने आप में एक त्रासदी है ।
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