
मेरी स्मृतियों की सुरंग से निकलती है वह कोयले से चलनेवाली , काली -सी भारी- भरकम इंजन के साथ नौ डिब्बों वाली रेलगाड़ी / रुकती है वह उस छोटे - से स्टेशन पर , जो इतिहास में बकुलहाँ स्टेशन के नाम पर दर्ज है / इसका नाम बकुलहाँ क्यों पड़ा , इसके बारे में तथ्य तो नहीं मिलता पर बड़े - बुजुर्गों के मुँह से सुना है कि इस इलाक़े में सफेद बगुले बहुतायत में पाए जाते थे इसीलिए इसका नाम बकुलहाँ पड गया / वैसे इस इलाक़े में बबूल के पेड़ भी बहुत हैं / यहाँ एक सिंगल लाइन हुआ करती थी अब तो डबल लाइन है / यह लाइन छपरा और बलिया को जोड़ती थी / मेरी स्मृतियों का एक अहम हिस्सा मेरे इस पैतृक स्टेशन से जुड़ा हुआ है / मैं अपनी आजी के साथ इस स्टेशन से मिलने बार - बार आती थी / इसके पीछे बहुत बड़ी वजह थी / और वह वजह थी इस स्टेशन के बगल से बहती हुई वह सरयू नदी / बचपन में हम उसे गंगा कहते थे / बचपन में हमारे लिए सब नदियाँ गंगा ही थीं / हमारी आजी बहुत व्रत और उपवास करती थीं / केवल आजी ही नहीं , बल्कि गाँव की बाकी औरतें भी उपवास और व्रत रखती थी / उपवास और व्रत के दौरान सब औरतें गंगा नहाने जाती थी / हमारे यहाँ नदियों और औरतों में एक गहरा और आत्मीय रिश्ता होता था और है / हमारी अपनी पुरखन औरतें अपना सुख - दुख नदियों से बाँटा करती थीं / उनके अधिकांश गीत नदियों को संबोधित करते हुए हैं / गंगा को पियरी धोती चढ़ाते हुए औरतें उलासित होकर गीत गति थीं / बेटे - बेटी के व्याह का न्योता देती थी और गुहार लगती थीं क़ि हे गंगा मैया ..अ ईओ हो /

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें