सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

 नदी को याद  करती हुई    कविताओं में सबसे बेहतर कविता


       हम अगर यहाँ न होते आज तो
            कहाँ होते , ताप्ती ?
     होते कहीं किसी नदी - पार  के गांव के
        किसी पुराने कुएं में
    डूबे होते किसी बहुत पुराने पीतल के
        लोटे की तरह
जिस पर कभी - कभी धूप भी आती
और हमारे ऊपर किसी का भी नाम लिखा होता /

या फिर होते हम कहीं भी
किसी भी तरह से साथ- साथ रह लेते
दो ढेलों की तरह हर बारिश में घुलते
हर दोपहर गरमाते /--   उदयप्रकाश

2 टिप्‍पणियां:

  1. या फिर होते हम कहीं भी
    किसी भी तरह से साथ- साथ रह लेते
    दो ढेलों की तरह हर बारिश में घुलते
    हर दोपहर गरमाते /-

    उदय प्रकाश जी की कविताओं को पढने का मुझे भी अवसर मिला है । अन्य कविताओं की तरह उनकी यह कविता भी घनीभूत भावों से भरी है । मेर पोस्ट पर आकर मेरा भी मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।

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  2. इस रचना की संवेदना मन पर असर करती है।

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