बुधवार, 18 दिसंबर 2013

भींगना दुख की बारिश में

धुन्धवाए हुए आसमान से
धूसर शाम चुपके से तर आती है
मेरे उंघ  रहे कमरे में ...
और उसके साथ उतरता  है
एक गहन अंधेरा
मेरे मन  में /

यह अंधेरा मेरा अपना है
सौपा है इसे " उस " ने
जो उजालों की रहनुमाई में
रंगबिरंगी तितलियाँ उड़ाया करता था /

इस अंधेरे में
खुलते हैं स्मृतियों के बंद झरोखें


जुगनुओं से  चमक उठते  हैं
कुछ सोए हुए दुख ....
और मैं सारी रात
भींग रहा होता हूँ
अपने दुख की बारिश में /

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