
एक अरसा गुजर गया था
केवल एक नाम .....एक चेहरा
वह भी कुछ धुंधला - सा
स्मृति - पटल पर बार- बार
दस्तक देता था /
अवचेतन मन अपने
बरसों के कारावास से ऊब चुका था
अंधेरे की घुप्प परछाईयों में
सदियों से वह चुप्पी साधे बैठा था /
मैं जानता था उसकी
इस ऊब और चुप्पी का अर्थ !
बात - बात में उतर आती
उदासी की भी खबर थी मुझे /
जानता था मैं
उन लंबी रातों को
न कटने वाली दुपहरियों को
और वह नीलकंठ भी मुझे याद था
जो न जाने किसकी याद में
अकेला आकाश को नापता रहता /
वह चेहरा ...... वह नाम
किसी गुमनाम नदी की तरह था
जिसमें उतरना
दुख में डुबकी लगाना था /
वह चेहरा ...... वह नाम
जो बरसों पहले
अंधेरे के तहख़ाने में
ढकेल दिया गया था
जहाँ स्मृतियों की आवाजाही पर
अघोषित पाबंदियाँ थीं/
वह चेहरा .....वह नाम
जिसे मैं छोड़ आया था
इतिहास के पीले पन्नों में
अब वह अक्सर
टंगा रहता है
मेरे छाते के साथ दीवार पर
उसके साथ टँगे रहते हैं -
दुख , स्मृति और एक अनकही
अधूरी - सी हँसी /