शनिवार, 23 नवंबर 2013

हमारे बाबूजी ..

हमारे  बाबूजी ....
रिटायर हो चुके हैं ......
हमने भी उनको
घर का एक कोना दे दिया है
जहाँ
एक सामान की तरह पड़े रहना है उन्हें  /

बाबूजी ....
हमारे घर की नींव थे
पर आज
हमें  अपने   कांगूरों से प्यार है /

हमने उन्हें अपनी दुनिया से बेदखल  कर दिया है
सौंपा  है उन्हें एकांत
जहाँ केवल धुन्ध है
चेहरों पर/ 
और 
उदासी के साथ 
अपने चूकने की पीड़ा भी है /


अब अक्सर
वे दूर तक निकल जाते हैं
जहाँ हमारी हँसी की खिलखिलाहटें
नहीं पहुँच पातीं / 

  कहीं दूर  से लौटते हुए बाबूजी  सूनी निगाहों से 
टटोलते हैं 
अपनों के चेहरों  पर 
थोड़ी - सी मिठास 
और थोड़ा - सा नमक / 


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