दूर से थैला लटकाए एक डाकिया आता है
मुठ्ठी भर मुस्कान के साथ
घर - आँगन
बेसब्री से दुआर तक आ जाते हैं /
बबुआ की चिट्ठी आई है
खैर - खबर तो ठीक है
पर इस बार भी
आना नहीं हो पाएगा ....
काम का बोझ ज़्यादा है
रुपया के लिए हाड़ गलाना पड़ता है
परदेश में
सब कुछ भुलाना पड़ता है
आदमी आदमी नहीं रह जाता
बस एक इंतजार रह जाता है
अगली बार आउँगा
भरोसा दिलाया है /
चिट्ठी के साथ
उ त रती है
उदासी की एक शाम
और
आँगन में बैठी गौरय्या
फुर्र से उड़ जाती है
परबतिया जांत पर
दुख का एक राग छेड़ देती है ....
चुपके से तारे....
उ तर आते हैं चूल्हे के पास
और चाँद
आँगन में बैठा उंघने लगता है
चिठ्ठी आई है ....
मुठ्ठी भर मुस्कान के साथ
घर - आँगन
बेसब्री से दुआर तक आ जाते हैं /
बबुआ की चिट्ठी आई है
खैर - खबर तो ठीक है
पर इस बार भी
आना नहीं हो पाएगा ....
काम का बोझ ज़्यादा है
रुपया के लिए हाड़ गलाना पड़ता है
परदेश में
सब कुछ भुलाना पड़ता है
आदमी आदमी नहीं रह जाता
बस एक इंतजार रह जाता है
अगली बार आउँगा
भरोसा दिलाया है /
चिट्ठी के साथ
उ त रती है
उदासी की एक शाम
और
आँगन में बैठी गौरय्या
फुर्र से उड़ जाती है
परबतिया जांत पर
दुख का एक राग छेड़ देती है ....
चुपके से तारे....
उ तर आते हैं चूल्हे के पास
और चाँद
आँगन में बैठा उंघने लगता है
चिठ्ठी आई है ....
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