गुरुवार, 14 नवंबर 2013

नये घर की तलाश में

सूरज  पहाड़ की ढलान से उतर रहा है
 
शायद एक नये घर की तलाश में
वह भी मेरी ही तरह

बड़ी जल्दी में है .....

मुझे भी जाना है
कुछ सामान समेटना है
कुछेक को यूँ ही छोड़ जाना है

सोचता हूँ ...
जिंदगी की पोटली से
दुख के उन चेहरों को
साथ ले लूँ ...
जिनसे मैं न्याय नहीं कर पाया
भागता रहा
पीछा  छुड़ाता रहा /

अपनी बेवफ़ाइयों  पर रंज है मुझे
मेरे कमजोर कंधे
उठा नहीं सके थे 
मेरे झूठे वादों का बोझ 
जिन्हें मैं लाद आया था 
उन मासूम चेहरों पर 
जो पीछे छूट गये थे 
अकेले 
लगातार 
शून्य से 
शून्यतर होने के लिए / 


मैं शून्य नहीं बनना चाहता था 
मुझे वह नीला आकाश चाहिए था 
जहाँ  तोतों का झुंड 
इंद्रधनुष  रचता है / 

मेरे पास पूरी पृथ्वी थी 
जो शिद्दत  से 
मेरे अपने होने का प्रमाण दे रही थी 
चुटकी  भर सिंदूर और बिछुए में 
मुझे बचाए हुए थी 
और अपने प्रेम को भी / 

पृथ्वी और आकाश 
मेरी  जीवन यात्रा के यही तो धुरी थे 
जिनमें मैं  ता उम्र 
किसी ग्रह की तरह चक्कर काटता रहा / 

कभी सोचा ही नहीं 
उन  चेहरों के बारे में 
जिन्हें मैं
आहिल्या की तरह शापित कर आया था 
जो मेरी शर्तों पर 
हार गये थे अपनी जिंदगी की बाजी /
कोई अजन्मा ही रह गया था 
ताकि मैं जिंदा रह सकूँ 
अपनी पृथ्वी के साथ 
अपने आकाश के साथ / 

सूरज जा  चुका है 
शायद उसे नया घर मिल गया  होगा 
मैं भी चलूं 
शायद 
मेरा भी नया घर कहीं इंतजार कर रहा होगा / 


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