बुधवार, 13 नवंबर 2013

कुछ बहाने

कुछ बहाने 
अपने आप में   कितनी बड़ी वजह बन जाते हैं 
वक्त  आने पर 
हम हम नहीं रहते 
तुम तुम नहीं रहते....

दूर कहीं एक रेलगाड़ी आती है ...
और 
हम चल पड़ते हैं ....
पीछे छोड़ते हुए एक लंबा इंतजार .../

कुछ चि ठि  यां ....
बिना बाँ चे रह जाती हैं 
 दुख चुपके  से आता है
और 
मन के एक खाली कोने में 
एक घर बना लेता है 
दुख के साथ आते हैं 
वे दिन भी 
जब तुम्हें छोड़ आया था 
स्टेशन के भीड़भाड़ में ...

और तुम इंतजार करती रह गई थीं ...
शायद अंतिम ट्रेन छूटने तक ..
तुम बोझिल कदमों से 
लौ  ती  हुई 
भीड़ में गुम हो गईं थीं

मैं भी लौटा था ...
अपने कुछ हानों  के साथ ..../




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