हर दिन यूँ ही बीत जा रहा है । दिनों का यूँ ही बीत जाना कितना कष्टदायक है । पर चाहकर भी इन दिनों को यूँ ही बीतते हुए मैं नहीं रोक सकती । दिनों को बीतते हुए देखकर लगता है कि ऐसे ही हम बिना वजह बीतते जाते हैं और एक दिन चलने का वक्त आ जाता है । सबकुछ पीछे छोड़कर एकदम से चल पड़ना पड़ता है । पीछे छूटे हुए लोग कितने पीछे छूट जाते हैं। ..... और हम यात्राओं की फेहरिस्त में शामिल हो जाते हैं । ये यात्राएं हमें कहाँ ले जाती हैं और कहाँ जाकर छोड़ देती हैं .... कुछ समझ में नहीं आता । कभी - कभी लगता है कि इन यात्राओं में हम हर मोड़ पर , हर पड़ाव पर अपना थोड़ा थोड़ा कुछ सौंपते चले जाते हैं , हमारे अंदर का थोड़ा थोड़ा कुछ पीछे छूट ही जाता है । सबकुछ समेट कर चलना बड़ा मुश्किल होता है । समेटना चाहते हो पर कहाँ समेटोगे ... हाथों में । हाथों को अंजुरी बनाकर कभी देखना । कितना संभाल पाते हो और कितना कुछ बिखर जाता है । मन में , ह्रदय में , आत्मा में समेटने की बात सोच रहे हो । पर ये भी कहाँ साथ देते हैं। ......ये . सब अपनी अपनी मन की करते हैं ।मन , प्राण ये भी नहीं सँभालते । अगर ये संभाल लेते तो फिर इस संसार में इतना दुःख क्योँ होता। ..
बुधवार, 3 फ़रवरी 2016
सोमवार, 1 फ़रवरी 2016
कहीं पढ़ा था कि किसी को समझाना बहुत आसान है पर अपने आप को समझना बहुत मुश्किल है । उम्र गुजर जाती है पर हम अपने आप को समझ नहीं पाते । अपने आप को जान नहीं पाते । उम्र की सारी पूंजी दूसरों को समझने और समझाने में खर्च कर देते हैं और अपने आप को उपेक्षित छोड़ देते हैं । बिना अपने आप को जाने समझे एक जिंदगी गुजार देते हैं । किसी जिंदगी का यूँ ही गुजर जाना कितनी बड़ी त्रासदी है । कभी सोचती हूँ कि अगर जीवन में त्रासदियां नहीं होती तो जीवन कैसा होता ? शायद नमक विहीन समुद्र जैसा । नमक न हो तो फिर जीवन कैसा ? नमक है तो जीवन है । जीवन से नमक का चला जाना भी तो अपने आप में एक त्रासदी है ।
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