आश्वस्त हूँ
इस पृथ्वी पर
कहीं कोई मेरा इंतजार नहीं कर रहा होगा /
न खुले रखे होंगे
किसी ने दरवाजे....
न किसी हल्के आहट पर
कोई पीछे मुड़कर
मेरे लिए देख रहा होगा /
न कोई चिट्ठी आएगी मेरे नाम
न मुंडेर पर रखा जाएगा
मेरे नाम का दीया ....
धीरे - धीरे झड़ता जाउँगा
बुरादे की तरह ....
तुम्हारी स्मृतियों से
और एक दिन
लौट जा उँगा
अपनी माटी के पास/
आश्वस्त हूँ
कहीं कोई मेरा इंतजार नहीं कर रहा होगा /
इस पृथ्वी पर
कहीं कोई मेरा इंतजार नहीं कर रहा होगा /
न खुले रखे होंगे
किसी ने दरवाजे....
न किसी हल्के आहट पर
कोई पीछे मुड़कर
मेरे लिए देख रहा होगा /
न कोई चिट्ठी आएगी मेरे नाम
न मुंडेर पर रखा जाएगा
मेरे नाम का दीया ....
धीरे - धीरे झड़ता जाउँगा
बुरादे की तरह ....
तुम्हारी स्मृतियों से
और एक दिन
लौट जा उँगा
अपनी माटी के पास/
आश्वस्त हूँ
कहीं कोई मेरा इंतजार नहीं कर रहा होगा /
kabitayne achhi hain.Sangraha nikalna chahiye.
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