मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

तुम...
कहीं दूर किसी सभा में
बहस- दर - बहस में
शामिल हो
मुठ्ठियाँ
   तनी हैं तुम्हारी
तुम रोष में हो
गुस्सा निकाल रहे हो डेस्क पर
क्या हो गया है समाज को
स्त्रियों के प्रति बढ़ती हिंसा पर
तुम चिंतित हो ...
तालियाँ बज रहीं हैं
प्रशंसकों से घिरे हो ....../



और मैं ..
तुम्हारी पत्नी ...
बीमार हूँ /  

मेरे पास केवल इंतजार है
तुम्हारी बहस कब ख़त्म होगी ?