गुरुवार, 24 अक्तूबर 2013

उड़ जा हंसा

उड़ जा हंसा 
देस हुआ बिराना 
 कोई अपना  पराया
देस हुआ बेगाना .....


यह जग है 
दुखों का डेरा 
 है इसका कोई 
ठौर - ठिकाना ....

मोह के बंधन 
बड़े हैं ढीले ....
माटी के हैं 
सब खेलखिलौने ...

रिश्ते -  नाते 
सब झूठे 
तम में 
कोई  पूछे ....

चल  दूर कहीं ...

उड़ जा हंसा
देस हुआ बिराना .....

शनिवार, 19 अक्तूबर 2013

अनाम - सा नाम

घुटती  हुई साँसों के साथ 
उसने अंतिम बार देखा था मुझे 
आँसू का एक कतरा
उसकी बंद होती आँखों से 
ओस की बूँद की तरह
मेरी हथेली पर  गिरा था ..

मैं अकिंचन - सा 
उसकी ठंडी हो चुकी हथेलियों 
                   को भिंचे 
प्रश्नों के घेरे में खड़ा था /

प्रश्न .... जिनसे मैं 
अक्सर पीछा छुड़ाया करता था 
आज मौन होकर 
राख की ढेर में बदल चुके थे ....

वह जा चुकी थी 
प्रश्नों के दायरे से बाहर...
कभी हंसते हुए उसने पूछा था 
तुम मुझे प्यार करते हो ....
मैं सकपका गया था 
अपनी चोरी पकड़े जाने के डर से 
मैने उसके सर की कसम खा ली थी 
वह बेतहासा हंस पड़ी थी /

मैं कहाँ समझ पाया था 
उसकी इस हँसी का राज...../

मैं अपनी दुनिया में 
रोशनी के झिलमिलाते 
 ख्वाबों को ज़मीं पर 
उतार रहा था ...
और वह
नीम बेहोशी की हालत में 
अंधेरे सुरंग में उतरते चली गई थी .../

वह....
शायद उसका कोई 
नाम था ....
पर उसने अपना नाम तो 
बरसों पहले ही खो दिया था /
मेरी अम्मा के लिए 
वह " मेरी पत्नी " थी 
मेरे लिए 
वह मेरे बेटे की " माँथी /

उसे मैं विदा कर रहा हूँ 
अपने घर से 
जिसे वह अपना घर मानती रही थी /

उसे दे रहा हूँ मैं 
एक निरभ्र आकाश...
एक खिलखिलाती नदी ...
और 
एक अनाम - सा नाम ......