शनिवार, 27 नवंबर 2010
बिहार में नीतीश की जीत : सपनो का आगाज
बिहार में नीतीश दुबार सत्ता संभल चुके हैं / उनका सत्ता में दुबारा आना इस बात का प्रतीक है कि बिहार की जनता अपने सपनो को साकार करना चाहती है उसे भी दूसरे राज्यों की तरह अपने बिहार को विकास की सीढ़ियो पर चढ़ते हुए देखना है / बिहार की तस्बीर में भी सुनहले रंग भरने हैं / रोजगार के लिये दरवाजे खोलने हैं और यह सब करने के लिये एक ऐसा नेता चाहिए जो इसके लिये काम करे / इस चुनाव में भले ही ५५% जनता ने ही मतदान के जरिए नीतीश के पक्ष में अपना मत दिया है लेकिन यह मत भी बहुमत की बात करता है इस जीत के बाद नीतीश की जिम्मेदारी बहुत बढ़ गई है अब उन्हें इस पारी में जनता की अपेक्षाआवों पर पूरी तरह खरा उतरना पड़ेगा
वी एस नाय पाल पर इस्लामिक फतवा
अभी हाल ही में वी एस नाय पाल को यूरोपीय लेखक संसद के द्वारा तुर्की में आयोजित एक कार्यक्रम में उदघाटन के लिए बुलाया जाना था। लेकिन वहां के स्थानीय तुर्की लेखकों और धार्मिक प्रेस के दबाव की वजह से उनके बदले ब्रिटिश उपन्यासकार हरी कुंजरू को उदघाटन भाषण देने के लिए बुलाया गया / हम सभी यह जानते हैं की वी. एस नायेपाल इस्लाम की निंदा करते रहे हैं और इसीलिये तुर्की में उनके बुलाए जाने का विरोध किया गया और धार्मिक संघठनो की तरफ से यह कहा गया कि उनकी मौजूदगी इस्लाम का अपमान है।अब यह सोचने वाली बात है कि हम क्या तालिबानी संस्कृति से उबर नहीं सकते ?आखिर कब तक इन ताकतों की हर बात को हम यूँ ही मानते रहेंगे ? क्या एक लेखक को अपनी विचारधारा से दूरी बना लेनी चाहिए ? लेखकीय स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी पर ये धार्मिक संघठन जिस तरीके से आए दिन हमले कर रहे हैं। वह चिंता वाली बात है / क्या इन फतवों का जवाब नहीं दिया जा सकता?
इस घटना से साफ़ पता चलता है कि इस्लामिक रुद्धिवाद या कट्टरवाद से यूरोप भी कितना डरता है / यह भी सोचने वाली बात है कि वह इसे रोकने या इसका प्रतिवाद करने के बजाए इसे हवा भी दे रहा है आज जरुरत इस बात की है कि हमें किसी भी प्रकार का रुद्धिवाद चाहे वह हिन्दू हो या इस्लामिक हो उसका विरोध करना चाहिए/
इस घटना से साफ़ पता चलता है कि इस्लामिक रुद्धिवाद या कट्टरवाद से यूरोप भी कितना डरता है / यह भी सोचने वाली बात है कि वह इसे रोकने या इसका प्रतिवाद करने के बजाए इसे हवा भी दे रहा है आज जरुरत इस बात की है कि हमें किसी भी प्रकार का रुद्धिवाद चाहे वह हिन्दू हो या इस्लामिक हो उसका विरोध करना चाहिए/
शनिवार, 20 नवंबर 2010
छात्रों में बढती हुई दिशाहीनता
छात्र हमारे सामाजिक जीवन के सबसे महत्वपूर्ण अंग होते हैं पर आज कल के छात्रों को देखकर बड़ी निराशा होती है न पढने से इनका कोई सरोकार होता है और न कुछ सीखने के प्रति दिलचस्पी / आप कॉलेज के छात्रों से मिल लीजिए तो यह हकीकत आपके सामने आ जाएगी / अब उनके लिये कॉलेज पढने का केंद्र नहीं रह गया है बल्कि राजनीति और फैशन करने का अखाड़ा बन चुका है अब वे न तो ज्ञान के प्रति जागरूक हैं और न गंभीर तरीके से कुछ पढना चाहते हैं.
अब तो वे चयन किए गए कुछ सवालो को पढ़कर परीक्षा की नदी पार कर लेना चाहते हैं जैसे तैसे जल्दी से नौकरी पा जाना चाहते हैं
राजनीति ने भी छात्रों का बेडा गर्क किया है राजनीति की सही समझ सभी छात्रों को है ऐसा नहीं कहा जा सकता
राजनीति का मतलब यह नहीं होता की हम विरोध के नाम पर सब सीमाओ को लाँघ जाये उंचश्रिंखल बन जाए
विरोध के नाम पर , राजनीति करने के नाम पर पढाई से तौबा कर ले और यह मानकर चले की राजनीति में किसी पार्टी का झंडा ढोने मात्र से नौकरी मिल जाएगी तो यह खाई में गिरने के समान है
ऐसा नहीं है की सारा दोष इन छात्रो पर लाद दिया जाए इसके लिये अध्यापक वर्ग भी बहुत हद तक जिम्मेदार है हम अध्यापको ने छात्रों को बेलगाम छोड़ दिया हैं हम अध्यापक भी ओछी राजनीति करते हैं और अपनी भूमिका से कहीं न कहीं मुँह चुराते हैं
आज अध्यापन की दुनिया में ऐसे लोगो की भरमार है जो इस पेशे को महज नौकरी मानते हैं न कुछ नया पढ़ते हैं और न छात्रों को पढने के लिये प्रेरित करते हैं बस क्लास लेने तक अपने आप को सीमित रखते हैं
अब तो वे चयन किए गए कुछ सवालो को पढ़कर परीक्षा की नदी पार कर लेना चाहते हैं जैसे तैसे जल्दी से नौकरी पा जाना चाहते हैं
राजनीति ने भी छात्रों का बेडा गर्क किया है राजनीति की सही समझ सभी छात्रों को है ऐसा नहीं कहा जा सकता
राजनीति का मतलब यह नहीं होता की हम विरोध के नाम पर सब सीमाओ को लाँघ जाये उंचश्रिंखल बन जाए
विरोध के नाम पर , राजनीति करने के नाम पर पढाई से तौबा कर ले और यह मानकर चले की राजनीति में किसी पार्टी का झंडा ढोने मात्र से नौकरी मिल जाएगी तो यह खाई में गिरने के समान है
ऐसा नहीं है की सारा दोष इन छात्रो पर लाद दिया जाए इसके लिये अध्यापक वर्ग भी बहुत हद तक जिम्मेदार है हम अध्यापको ने छात्रों को बेलगाम छोड़ दिया हैं हम अध्यापक भी ओछी राजनीति करते हैं और अपनी भूमिका से कहीं न कहीं मुँह चुराते हैं
आज अध्यापन की दुनिया में ऐसे लोगो की भरमार है जो इस पेशे को महज नौकरी मानते हैं न कुछ नया पढ़ते हैं और न छात्रों को पढने के लिये प्रेरित करते हैं बस क्लास लेने तक अपने आप को सीमित रखते हैं
चुनाव में बिहार का ऊंट किस करवट बैठेगा ?
दोस्तों , आज बिहार में चुनाव का अंतिम दौर ख़तम हुआ है . सभी नेताओ और जन प्रतिनिधियो की तक़दीर का फै स ला वोटिंग मशीन में बंद हो चुका है इसे लेकर मीडिया में बहुत कयास लगाया जा रहा है की अब बिहार किसके हाथ में जाने वाला है ? नीतीश आएंगे या लालू और रामविलाश का गठबंधन सत्ता में वापस आएगा ? फिलहाल कुछ कहना अभी आधारहीन बात होगी क्यों की हमारे लोकतंत्र में जनता की नब्ज को टटोलना अब आसान नहीं रह गया है जनता जनार्दन बिहार के ऊंट को किस करवट बैठाएगी कुछ बताया नहीं जा सकता जनता विकास को देखेगी या फिर से वही जाति के नाम पर अपने जन प्रतिनिधियो को चुन कर अपना भाग्य विधाता बनाएगी
आज समाचार में मैंने एक रिपोर्ट पढ़ा जिसमें यह उल्लेख था की आज से १२-१३ साल पहले लेखक और पत्रकार अरविन्द एन दास ने लिखा था , " बिहार विल राइज फ्रॉम इट्स ऐशेज " यानि बिहार अपनी राख से उठ खड़ा होगा
इस बात को पढ़ते वक्त यक़ीनन यह लग रहा है की क्या वह समय आ गया है या क्या वह समय आ रहा जब बिहार की तस्वीर में बदलाव के चिनह या निशान दिखाई पड़ रहे हैं ?
सबसे पहले तो सडकों की बात पर आइय / अब बिहार में पक्की सड़के और जगमगाते हाई वे दिखाई पड़ रहे हैं / लडकियां साइकिलो से पढ़ने निकल रही हैं क्यों की नीतीश सरकार ने जो सबसे अच्छी कोशिश की की लड़कियों को पढने के लिये घर से बाहर निकाला और उन्हें साईकिल दिया जो दूर दराजो से आवागमन की सुविधा नहीं होने की वजह से पढने नहीं जा पाती थी अब आप कहीं भी किसी भी इलाके में चले जाइए साइकिलो पर पढने जाती हुई लड़कियां दिखलाई पड़ती हैं शायद इन लड़कियों से बिहार में ब्याप्त अशिक्षा का अँधेरा दूर हो /
तीसरी बात है हम सभी को यह स्वीकारने में कोई हर्ज नहीं है की जो बिहार कभी अपराधो की दुनिया में प्रथम स्थान पर विराजमान था आज वह ग्राफ थोडा तो गिरा ही है अब अपहरण का उद्योग बंद हो चुका है बड़े बड़े बाहुबली जेल में बंद हैं
बिहार को आज जरुरत इस बात की है की उसे फिनिक्स पक्षी की तरह अपने राख से फिर पुनर्जीवित होना पड़ेगा.
दोस्तों इस चुनाव से ऐसा ही हो हम सब की यही आशा है बिहार पर विश्वास है की एक दिन वह अपनी विरासत को सहेजेगा और फिर से एक नया बिहार चमकेगा
आज समाचार में मैंने एक रिपोर्ट पढ़ा जिसमें यह उल्लेख था की आज से १२-१३ साल पहले लेखक और पत्रकार अरविन्द एन दास ने लिखा था , " बिहार विल राइज फ्रॉम इट्स ऐशेज " यानि बिहार अपनी राख से उठ खड़ा होगा
इस बात को पढ़ते वक्त यक़ीनन यह लग रहा है की क्या वह समय आ गया है या क्या वह समय आ रहा जब बिहार की तस्वीर में बदलाव के चिनह या निशान दिखाई पड़ रहे हैं ?
सबसे पहले तो सडकों की बात पर आइय / अब बिहार में पक्की सड़के और जगमगाते हाई वे दिखाई पड़ रहे हैं / लडकियां साइकिलो से पढ़ने निकल रही हैं क्यों की नीतीश सरकार ने जो सबसे अच्छी कोशिश की की लड़कियों को पढने के लिये घर से बाहर निकाला और उन्हें साईकिल दिया जो दूर दराजो से आवागमन की सुविधा नहीं होने की वजह से पढने नहीं जा पाती थी अब आप कहीं भी किसी भी इलाके में चले जाइए साइकिलो पर पढने जाती हुई लड़कियां दिखलाई पड़ती हैं शायद इन लड़कियों से बिहार में ब्याप्त अशिक्षा का अँधेरा दूर हो /
तीसरी बात है हम सभी को यह स्वीकारने में कोई हर्ज नहीं है की जो बिहार कभी अपराधो की दुनिया में प्रथम स्थान पर विराजमान था आज वह ग्राफ थोडा तो गिरा ही है अब अपहरण का उद्योग बंद हो चुका है बड़े बड़े बाहुबली जेल में बंद हैं
बिहार को आज जरुरत इस बात की है की उसे फिनिक्स पक्षी की तरह अपने राख से फिर पुनर्जीवित होना पड़ेगा.
दोस्तों इस चुनाव से ऐसा ही हो हम सब की यही आशा है बिहार पर विश्वास है की एक दिन वह अपनी विरासत को सहेजेगा और फिर से एक नया बिहार चमकेगा
सोमवार, 15 नवंबर 2010
भ्रस्टाचार को रोकने की कवायद
देर से ही सही कांग्रेस ने भ्रस्टाचार के शक्तिशाली घोड़ो को लगाम लगाया है. अशोक चौहाण , कलमाड़ी और अब राजा की नकेल कसी जा चुकी है/ यह बड़े अचरज की बात है की भ्रस्टाचार में गले तक डूबे नेताओ को अब शर्म नहीं आती है/ बड़े से बड़े आरोपों को ये आसानी से हजम कर जाते हैं और बड़ी राशियो को भी/. इस्तीफे देने के लिये इन पर हाई कमान की तरफ से जब तक दबाव नहीं बनता तब तक ये अपना पद छोड़ना नहीं चाहते /. इनसे कोई पूछे की क्या पद पर रहने की नैतिकता का आपने कहाँ तक ध्यान रखा है ? क्या भ्रस्टाचार में आकंठ डूबते वक्त आपने अपने पद की गरिमा का ध्यान रखा ?
अब सोचने का वक्त आ गया है की क्या ऐसे नेताओ के बल पर हिदुस्तान अपने लोकतंत्र को सुचारू रूप से चला पायेगा ?
क्या इन नेताओ को वोट देते वक्त हमे अब सोचना नहीं चाहिए ?
अब हिदुस्तान के वोटरों को आँख खोलना ही पड़ेगा आखिर कब तक हम ऐसे नेताओ को चुनते रहेंगे जो गद्दी मिलते ही सबसे पहले देश को और देश के आम आदमी के मेहनत की कमाई को लूटने में लग जाते हैं /
फिलहाल कांग्रेस ने दबाव से ही सही भ्रस्त नेताओ को एक सबक तो दिया ही है पर सिर्फ इस्तीफे से काम नहीं चलने वाला है इन नेताओ पर कड़ी करवाई होनी चाहिय / सभी राजनीतिक दलो को ऐसे नेताओ को टिकट ही नहीं देना चाहिए / और न तो ऐसे नेताओ को मंत्रिमंडल में कोई जगह मिलनी चाहिय ? अब सबको इस भ्रस्टाचार के खिलाफ अपनी भूमिका साफ करनी होगी क्यों की यहाँ सभी हम्माम में नंगे हैं / और नंगो से हिंदुस्तान को मुक्ति पाना ही होगा.
अब सोचने का वक्त आ गया है की क्या ऐसे नेताओ के बल पर हिदुस्तान अपने लोकतंत्र को सुचारू रूप से चला पायेगा ?
क्या इन नेताओ को वोट देते वक्त हमे अब सोचना नहीं चाहिए ?
अब हिदुस्तान के वोटरों को आँख खोलना ही पड़ेगा आखिर कब तक हम ऐसे नेताओ को चुनते रहेंगे जो गद्दी मिलते ही सबसे पहले देश को और देश के आम आदमी के मेहनत की कमाई को लूटने में लग जाते हैं /
फिलहाल कांग्रेस ने दबाव से ही सही भ्रस्त नेताओ को एक सबक तो दिया ही है पर सिर्फ इस्तीफे से काम नहीं चलने वाला है इन नेताओ पर कड़ी करवाई होनी चाहिय / सभी राजनीतिक दलो को ऐसे नेताओ को टिकट ही नहीं देना चाहिए / और न तो ऐसे नेताओ को मंत्रिमंडल में कोई जगह मिलनी चाहिय ? अब सबको इस भ्रस्टाचार के खिलाफ अपनी भूमिका साफ करनी होगी क्यों की यहाँ सभी हम्माम में नंगे हैं / और नंगो से हिंदुस्तान को मुक्ति पाना ही होगा.
शुक्रवार, 12 नवंबर 2010
obama ka saugat
ओबामा की भारत यात्रा से निसंदेह भारत को एक नई दिशा मिली है और यह दिशा भारत , अमेरिका और पूरी दुनिया के लिये बहुत अहम् है . अब अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश को भी लगने लगा है की अब भारत को नजरंदाज करके न तो आर्थिक महाशक्ति बना जा सकता है और न एशिया में अपना महत्वा स्थापित किया जा सकता है. जो भी हो जाते जाते ओबामा ने भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ में स्थाई सीट के लिये अपना रुख नरम तो किया है और एक आश्वासन भी मिला है पर भारत का यह सपना कब तक पूरा होगा ? देखा जाये
आज जरुरत इस बात की भी है की भारत को अपनी बढती हुई ताकत को और एक नई पहचान को पूरी दुनिया से मनवाना पड़ेगा. ओबामा से इसकी शुरुआत हो चुकी है इस यात्रा से भारत और अमेरिका के संबंधो में एक गर्माहट तो बेशक आई है और इस गर्माहट से चीन और पाकिस्तान जैसे देशो के माथे पर चिंता की लकीरें भी खीचीं हैं /
आज जरुरत इस बात की भी है की भारत को अपनी बढती हुई ताकत को और एक नई पहचान को पूरी दुनिया से मनवाना पड़ेगा. ओबामा से इसकी शुरुआत हो चुकी है इस यात्रा से भारत और अमेरिका के संबंधो में एक गर्माहट तो बेशक आई है और इस गर्माहट से चीन और पाकिस्तान जैसे देशो के माथे पर चिंता की लकीरें भी खीचीं हैं /
गुरुवार, 11 नवंबर 2010
kashmir se judi kuch batein (2)
अंग्रजो ne इस राष्ट्रवादी लहर को रोकने के लिये एक रणनीति बनाई और यह निर्णय किया की कश्मीर में मुस्लिमो की बड़ी जनसँख्या का लाभ लेने के लिये किसी शक्तिशाली मुस्लिम नेता को जनम दिया जाये संयोग से उस समय अलीगढ़ विश्वविद्यालय से एम्. ए पास कर के एक नयुवक आया था जो यदपि शिक्षक की नौकरी कर रहा था लेकिन उसमें राजनीतिक मह्त्वाकंछा बहुत अधिक थी उस युवक् का नाम था शेख अब्दुल्ला / ब्रिटिश सरकार ने इस युवक् पर अपनी नजर केंद्ररित कर दी /शेख अब्दुल्ला प्रारंभ से ही सांप्रदायिक प्रवृति का व्यक्ति था इसलिये ब्रिटिशो को माहाराजा के विरुद्ध भड़काने के लिये एक अंग्रजी पढ़ा लिखा व्यक्ति मिल गया यदपि वह गुलाम अबबास चौधुरी की मुस्लिम कांफ्रेस की ओर आकर्षित था, लेकिन मह्त्वाकंअछि अब्दुल्ला को यहाँ अपना भवइष्य अधिक सुनहरा नजर आया . परिस्थितिया ऐसी तैयार होती चली गई की शेख अब्दुल्ला ने अपनी खुद की नेशनल कांफ्रेस नामक पार्टी बना डाली कट्टरवादी अब्दुल्ला राजा हरी सिंह का विरोधी तो था ही उसने भारत छोड़ो की नारे की तरह १९४६ में महाराजा के विरुद्ध कश्मीर छोड़ो आन्दोलन शुरू कर दिया. महाराजा ने शेख और उसके साथिओ को गिरफ्तार कर लिया. महात्मा गाँधी ओर सरदार पटेल के विरोध के बावजूद पंडित जवाहरलाल नेहरु ने मराराजा से शेख को छओड देने की अपील की . यही नहीं उन्होंने कश्मीर आकर शेख का मुकदमा लड़ने की घोषणा भी कर दी . महाराजा ने नेहरु के कश्मीर प्रवेश पर रोक लगा दी थी प्रवेश करते हुए महाराजा ने नेहरु को गिरफ्तार भी कर लिया नेहरु महाराजा की इस कार्यवाही पर जल भुन गए यहीं से कश्मीर समस्या का अंकुर फूटा इसे हल करने में नेहरु ने अपनी मान मर्यादा को दाव् पर लगा दिया आज जो कुछ हम देख रहे हैं वह केवल महाराजा के विरुद्ध में एक हुए अब्दुल्ला और नेहरु का पैदा किया हुआ विष है.
भारत के आजाद हो जाने के पश्चात भी जिन्ना ने महाराजा हरी सिंह का पीछा नहीं छोड़ा कभी उनके अपहरण की योजना बनाई तो कभी खाने में विष पहुचाया इसके बावजूद जब हरी सिंह को अपने राश्ते से नहीं हटा पाए तो २० अक्टूबर १९४७ को पाकिस्तान के मेजर जनरल अकबर खान ने कबाइली सेना की आड़ में कश्मीर पर हमला कर दिया महाराजा की सेना पाक सेना की तुलना में बहुत कम और कमजोर थी / निराश महाराजा ने २४ अक्टूबर को ही भारत सरकार के समूख कश्मीर के विलय का प्रस्ताव रख दिया. २७ अक्टूबर १९४७ को प्रस्ताव स्वीकृत किया गया
सरदार पटेल के विरोध के बावजूद पंडित नेहरु ने सेना की कमान शेख को सौप दी जिसने अपने प्रभाव वाले छेत्र को ही ध्यान में रखा भारतीय सेना दो तिहाई भाग को जीत चुकी थी, लेकिन शेख ने सेना को रोक कर गिलगित की और मोड़ दिया जिसका नतीजा यह आया की पाकिस्तान के कब्जे में आज भी भारत का ७८,११४ वर्ग किलोमिटर छेत्र है जहाँ भारत पर आतंकवादी हमले करने के लिये आतंकी प्रशिक्षण शिविर चलाते हैं / " इस लेख को आप सभी पढ़ कर विचार करे
भारत के आजाद हो जाने के पश्चात भी जिन्ना ने महाराजा हरी सिंह का पीछा नहीं छोड़ा कभी उनके अपहरण की योजना बनाई तो कभी खाने में विष पहुचाया इसके बावजूद जब हरी सिंह को अपने राश्ते से नहीं हटा पाए तो २० अक्टूबर १९४७ को पाकिस्तान के मेजर जनरल अकबर खान ने कबाइली सेना की आड़ में कश्मीर पर हमला कर दिया महाराजा की सेना पाक सेना की तुलना में बहुत कम और कमजोर थी / निराश महाराजा ने २४ अक्टूबर को ही भारत सरकार के समूख कश्मीर के विलय का प्रस्ताव रख दिया. २७ अक्टूबर १९४७ को प्रस्ताव स्वीकृत किया गया
सरदार पटेल के विरोध के बावजूद पंडित नेहरु ने सेना की कमान शेख को सौप दी जिसने अपने प्रभाव वाले छेत्र को ही ध्यान में रखा भारतीय सेना दो तिहाई भाग को जीत चुकी थी, लेकिन शेख ने सेना को रोक कर गिलगित की और मोड़ दिया जिसका नतीजा यह आया की पाकिस्तान के कब्जे में आज भी भारत का ७८,११४ वर्ग किलोमिटर छेत्र है जहाँ भारत पर आतंकवादी हमले करने के लिये आतंकी प्रशिक्षण शिविर चलाते हैं / " इस लेख को आप सभी पढ़ कर विचार करे
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