शनिवार, 29 मार्च 2014

भोला - सा तर्क

 सफ़ेद  चील       झपट्टा    मारती  है
        और           लेकर        उड़      जाती है
            अपने          पंजों   में
                              एक         मासूम      सा      चूजा     ....... /


  दूर  कहीं  एक    सूखा  पत्ता
दरख्त  से  टूटता  है
और  चीख  उठती   है
  टिटहरी। ....


मिथ  से निकल आते हैं राम
अपनी  मर्यादा के साथ
और सीता को
फिर से याद आता है
अपना निर्वासन। .




सदियों से
एक  भोला - सा तर्क
हत्या       करता   रहा    है
   एक  निष्पाप
   जीवन  का । ....
     


.... ??

घना अँधेरा
लाल लकीरें

काली परछाइयाँ
नकाब पोश   चेहरे


ठूँठ  खड़ा वह पेड़
उतरता पतझड़
बारूद सी हवा
नसों को चीरती




तड़पता पक्षी
टूट ती  साँस
सूना  आकाश
धीमा फैलता जहर
उतरता गहन अंधकार
डूबता मन पारावार  /

रविवार, 16 मार्च 2014

संतरे रंग वाली मेरी प्रेमिका

मैं संतरे रंग वाली अपनी  प्रेमिका को
 पृथ्वी के आखिरी छोर पर बने
उस घर  में छोड  आया था
जिसकी दीवारें सफ़ेद थीं
और
छत कत्थई - हरे रंगों में
टंगा  रहता था
उदास आकाश को थामे /


और भूल गया था उसे
जैसे भूल जाते हैं हम
अपना चश्मा
या
अपनी छड़ी
कहीं रखकर
और चाह कर भी
याद नहीं रख पाते
कहाँ रखा था हमने। …

और यूँ ही
धीरे - धीरे
हम भूलने लगते हैं
कब हमने खुलकर हंसा था
कब हमने प्यार किया था
केवल प्यार के लिए /

कब देखा था
चीटियों को पहाड़ लांघते हुए
और
कब देखा था
तुतलाती बोली में
किसी बच्चे को
मम माँ बोलते हुए /








कब देखा था
एक मुट्ठी  सुख के लिए
अपनी पत्नी का
अपने पास आ बैठना /

सब कुछ भूलते हुए
हम  अपने - अपने  अरण्य  में पहुँचते हैं
जहाँ रह जाती हैं
केवल स्मृतियाँ
प्रेम की , अपने अकेलेपन की /

सोचता हूँ
इन बेहद एकांत क्षणों में
जब पृथ्वी अपनी परिक्रमा से
ऊब कर
थक कर
उस पेड़ के फुनगियों पर
जब उतरती होगी
तब मेरी संतरे रंग वाली  प्रेमिका
शायद मेरी बेटी को
अपनी गोद में उठाये
लोरी सुना रही होगी
और मेरी बेटी
मचल जाती होगी
चाँद को मुट्ठी में लेने के लिए
तब
मेरी संतरे रंग वाली  प्रेमिका
चाँद बन जाती होगी /

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

मेरा प्रेम उदास खड़ा था /

बरसों  बाद
बड़ी लंबी  नींद से जगा था मैं
 जाने कितने रतजगे के बाद
ऐसी नींद सोया था /
घर चुपचाप
मेरे बिस्तर पर तना
मेरे जागने   का इंतजार कर रहा था

मेरी किताबें
अलसाई -सी
अलमारियों में क़ैद थीं
और वे भी इंतजार में थीं ....
अपने पढ़े जाने की /







अच्छा लगा था ....
धूप का यूँ दबे  पाँव आना
और ...
हौले से एक मीठा चुम्बन

मेरे गालों पर दे जाना।
पर यह कौन है
जो मेरे सिरहाने खड़ा है
और उदास भी है /







तनिक ठहरकर
आँखों ने पहचानने की कोशिश की
मन ने तस्सली दिया
यह मेरा अपना ही है
और कोई नहीं
मेरे सिरहाने
मेरा प्रेम उदास खड़ा था /

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

मेरी बहस जारी है ....

दरख़्त   अंधेरे में  मौन खड़े थे
किसी बात को लेकर
शायद
 वे  लंबी बहस के बाद
सुस्ता रहे थे
या
उदास थे
या विचार  मग्न थे
कह नहीं सकता
क्यूँ कि
मैं भी एक लंबी बहस के बाद 
बेहद अकेला था / 

बहस ..... 
मैं घंटों बहस करता था 
बरसते पानी पर 
गुम होते मासूम बच्चों पर 
लुप्त होते बाघों पर
कटते  जंगलों पर  /

ईमानदारी , भ्रष्‍टाचार , देशसमाज , मान -प्रतिष्ठा 
 जाने कितने भारी - भरकम 
शब्दों से मैं रोज खेलता /
मैं इन शब्दों में 
अपने आपको छुपाता
कहीं  कहीं 
ये मेरे लिए 
मेरे जीने का उपक्रम थे /




बहस के बाद 
जब मैं बेहद एकांत हो जाता 
तब लौटता 
अपने आप के पास 
जहाँ मैं 
एक निरीह बच्चे की तरह 
सुबक कर रोता /
और अपनी ग़लतियों के लिए 
उससे माफी माँगता 
जो अब 
मुझे माफ़ करके जा चुकी थी  / 




मेरी बहस जारी है ....
इन दरखतों की तरह 
मैं भी अपने अंधेरे से लड़ रहा हूँ ..../




गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

मेरी बेटी .....




मेरी छोटी - सी गुड़िया 
तुझे मेरा ढेर - सारा प्यार 
और एक गुज़ारिश 
अगले जनम 
मेरी गोद में खिलना ...../

इस जनम ....
अपनी माँ को 
हो सके तो माफ़ करना ....
तेरी माँ हार गई है 
अपने प्रेम में .../
अपने -पराए 
मानसम्मान 
की लाज में 
मेरी बेटी .
तेरी माँ हार गई है /


तेरे लिए फिर मैं  उंगी 
धारण  करूँगी 
जल , आकाश और धरती 
ताकि दे सकूँ तुझे  मैं 
नया प्राण , नया जीवन
और एक प्यारी - सी हँसी  /

सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

आँसू की एक बूँद

एक दिन 
आँसू  की एक बूँद 
अचानक 
खिलखिला पड़ी ......

पूछने पर बताया ..
अब 
मैं 
किसी की आँखों में 
नहीं रहती .....


मैने भी हँसना सीख लिया है ..../