बुधवार, 14 नवंबर 2012

मेरे पिता





        जब  आकाश अंधड़ से घिरा था
मेरे पिता, तुम रोशनी  की तलाश में
एक दिया जला रहे थे /


सोया था मैं अपनी ही नींद में
जगे थे तुम सारी - सारी  रातें
मेरे हिस्से का सपना
तुमने अपनी आँखों में पाला  था /

चाँद पर जाना था मुझे
तारों को मुट्ठी  में लेना था
आसमान में  सूराखें करनी थीं मुझे
और मेरे पिता , तुम श्रम के बीहड़ जंगल में
लोहा पीट रहे थे
खदान में उतर रहे थे /

सुरमई दुनिया में दाखिल था मैं
और मेरे पिता , तुम अपने कन्धों पर
पृथ्वी का बोझ उठाये
दृष्टि से ओझल हो रहे थे /

1 टिप्पणी:

  1. Aapki kabita ek sradhanjali hai un tamam logo ki taraf se apne pita ko aur siksha hai un bacho ko jinke pita ek drishy se uske bhavishya ke liye bilin hone ko hai.Subhkamnaye.

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