बुधवार, 14 नवंबर 2012

समय से अनुरोध

          अशोक  वाजपे यी   की एक कविता से कुछ दिनों का विश्राम   लेना     चाहती हूँ /




समय , मुझे       सिखाओ

कैसे भर जाता है घाव ? - पर
एक  अदृश्य  फाँस  दुखती रहती है
जीवन - भर /

समय, मुझे बताओ
कैसे जब सब भूल चुके होंगे
रोजमर्रा  के जीवन व्यापर में
मैं याद रख सकूँ
और दूसरों से बेहतर न महसूस करूँ /

समय, मुझे सुझाओ
कैसे   मैं अपनी रौशनी  बचाए रखूं
तेल चुक जाने के बाद भी
ताकि वह लड़का
 उधार  ली महँगी किताब एक रात में ही पूरी पढ़ सके /

समय, मुझे सुनाओ वह कहानी
जब व्यर्थ   पड़  चुके हों शब्द ,
अस्वीकार किया  जा चूका हो सच,
और बाकी  न बची हो जूझने की शक्ति
तब भी किसी ने छोड़ा न हो प्रेम
तजी न हो आसक्ति ,
झुठलाया न हो अपना मोह /

समय, सुनाओ  उसकी गाथा
जो अंत तक बिना झुके
बिना  गिड गिड़ाय  या   लड़  खड़ा ए ,
बिना थके और हारे , बिना संगी - साथी ,
बिना अपनी यातना को सबके लिए  गाए ,
अपने अंत की ओर चला गया /

समय , अँधेरे में हाथ थमने ,
सुनसान में गुनगुनाहट  भरने ,
सहारा देने , धीरज  बंधाने ,
अडिग रहने , साथ चलने और लड़ने का
कोई भुला - बिसरा पुराना गीत  तुम्हें याद हो
 तो समय , गाओ
ताकि यह समय ,
यह अँधेरा ,
यह  भारी
यह असह्य समय कटे /   

1 टिप्पणी:

  1. samay kya batayega wah to khud swarthiyo ki bich sristi ki suru se phans kar tadap utha hai aur mukti talashta hai par wah sambhaw nahi hai knyo ki uski mapne ka adhikar swarthinyo ko mila hai esliye samay kuchh nahi bata sakta knyo ki wah khud bebas hai. Dhanyabad.

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