मंगलवार, 28 जून 2011

अन्ना हजारे और सिविल सोसाइटी के भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की आलोचना पर एक टिप्पणी

   अन्ना हजारे और सिविल सोसाइटी के  भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की अब आये दिन आलोचना हो रही है अब यह आलोचना भी एक मुहिम के तहत किया जा रहा है / इस मुहिम पर मुझे हिंदी के महत्वपूर्ण कवि कुंवर नारायण की एक कविता याद आ रही है जो मैं आप लोगों से साझा करना चाहती हूँ  /

                                    सम्मेदीन  की लड़ाई


                       खबर है
                  कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध 
बिलकुल अकेला लड़ रहा है एक युद्ध  
कुराहा  गाँव  का खब्ती सम्मेदीन

बदमाशों का दुश्मन
जान  गंवा बैठेगा एक दिन 
इतनी अकड़कर अपने को 
समाजसेवी कहनेवाला सम्मेदीन /


यह लड़ाई 
ज्यादा नहीं चलने की 
क्योंकि उसके रहते 
चोरों की दाल नहीं गलने की ........
एक छोटे -से    चक्रव्यूह   में घिरा है वह
और एक महाभारत में प्रतिछण 
लोहूलुहान हो रहा है सम्मेदीन

 भरपूर उजाले में रहे उसकी हिम्मत
दुनिया को खबर रहे
कि एक बहुत बड़े नैतिक साहस का  
      नाम है सम्मेदीन /

  जल्दी ही वह मारा जायेगा
सिर्फ उसका उजाला  लडेगा
अंधेरों के खिलाफ ....... खबर रहे
किस- किस के खिलाफ लड़ते हुए 
मारा गया निहत्था सम्मेदीन

बचाए रखना
उस उजाले को
जिसे अपने बाद
जिन्दा छोड़ जाने के लिये
जान पर खेल कर आज
एक लड़ाई लड़ रहा है
किसी गाँव का कोई खब्ती सम्मेदीन /

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