जिस शरण की तलाश थी
वह कहाँ मिली मुझे ?
फिर भी अंतहीन इंतज़ार में
मन बावरा -सा
कुछ तलाशता रहता है
यह मोह छूटे
नहीं छूटता !
आत्मा में थकान लिये
इस शरीर की यात्रा जारी है
न जाने कहाँ ठौर मिलेगी ?
फिर भी आँखों में उम्मीद का
दिया झिलमिलाता है, दिपदिपाता है
मंजिल आखिरकार
एक न एक दिन
किसी आशीर्वाद की तरह
मिल ही जाएगी /
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