बंद ... बंद ..... कल फिर से एक बंद का चेहरा बंगाल को देखना पड़ा / पता नहीं बंगाल कब इस बंद के कल्चर से उबरेगा ? यहाँ बंद के नाम पर जिस प्रकार की राजनीति की जाती है वह अपने आप में बेहद खतरनाक भी है और बेहद उबाऊ भी है / हड़ताल और बंद के जरिए पता नहीं किन मुद्दों को सुलझाया जाता है , यह मुझे आज तक समझ में नहीं आया है / ममता की सरकार ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना दिया और सरकार की तरफ से जो कदम उठाने चाहिए थे उसने उठाया /सरकारी गाड़ियाँ दौड़तीं रहीं वीरान सड़कों पर / रेल गाड़ियाँ पटरिओं पर समय पर चलती रहीं / पर बंगाल की जनता सड़कों पर नहीं निकली क्योंकि वह बंद को एक छुट्टी के तौर पर लेती है / जो लोग सड़कों पर दिखे या अपने - अपने दफ्तरों में दिखे , वे सभी सरकारी कर्मचारी थे जिनमें ९०% अपनी सर्विसे या नौकरी बचाने आये थे क्योंकि सरकार की तरफ से बाकायदा धमकी दी गई थी या कड़ा निर्देश दिया गया था कि जो नहीं आयेंगे उन्हें देखा जायेगा / यह सरकार की एक सफल रण नीति थी जो कारगर भी सिद्ध हुई /
एक सवाल यह भी उठता है कि आने वाले दिनों में हमें अपने विरोध और मांगों के लिए बंद के अलावा अन्य विकल्पों की तलाश किस दिशा में करनी होगी ? अब सारे राजनीतिक दलों को इस दिशा में अपने सरे मतविरोधों को दरकिनार करके सोचना पड़ेगा /
एक सवाल यह भी उठता है कि आने वाले दिनों में हमें अपने विरोध और मांगों के लिए बंद के अलावा अन्य विकल्पों की तलाश किस दिशा में करनी होगी ? अब सारे राजनीतिक दलों को इस दिशा में अपने सरे मतविरोधों को दरकिनार करके सोचना पड़ेगा /
एक सवाल यह भी उठता है कि आने वाले दिनों में हमें अपने विरोध और मांगों के लिए बंद के अलावा अन्य विकल्पों की तलाश किस दिशा में करनी होगी ? अब सारे राजनीतिक दलों को इस दिशा में अपने सरे मतविरोधों को दरकिनार करके सोचना पड़ेगा ।
जवाब देंहटाएंआपकी बातों से पूर्णरूपेण एवं सर्वभावेन सहमत हू । मेरे पोस्ट पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
मेरे नए पोस्ट "अमृत लाल नागर" पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
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