न जाने क्यूँ मैं कविता पढ़ते हुए
उदास हो जाता हूँ ?
कविता की दुनिया में
मेरे हिस्से का दुःख
अक्सर खड़ा मिल जाता है /
अपने सन्नाटे से बचने के लिए
मैं कविता की दुनिया में दाखिल
होता हूँ पर वहां वह सन्नाटा
भी अकेलेपन की चादर ओढ़े
खड़ा रहता है मेरे इंतज़ार में /
पता नहीं कविता में इतना दुःख
किसने लाकर चुपके से रख दिया है
और अकेलापन लुकाछिपी
खेलते हुए आ दुबका है
कविता की ओट में किसी बच्चे की तरह/
कभी हमने रचा था कविता को
अपने दुःख से बचने के लिए
सन्नाटे के बीहड़पन से
उबरने के लिए
पर पता नहीं क्यों ?
मुझे लगता है
शायद दुःख और सन्नाटे से
बचना मनुष्य की सबसे
नासमझ चेष्टा है/
इस कविता की व्याख्या नहीं की जा सकती। कोई टीका नहीं लिखी जा सकती। सिर्फ महसूस की जा सकती है।
जवाब देंहटाएंkavita vyakhya ya tikka ke liye nahi likhi jati hai wah to sirf baichaini aur pida se janam leti hai
हटाएंशायद दुःख और सन्नाटे से
जवाब देंहटाएंबचना मनुष्य की सबसे
नासमझ चेष्टा है/
बहुत ही भाव प्रवण कविता । मेरे पोस्ट "भीष्म साहनी" पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा ।धन्यवाद ।
dhnayvad prem sarowar ji.
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