अपने - अपने हिस्से के दुःख में मगन रहें हम /
कभी मौका ही न मिला
एक दूसरे के दुःख से मिलने का
बतियाने का ,
जानने का , समझने का /
हम दोनों दावा करते रहे ताउम्र
कि हम अकेले हैं
पर हमें से कोई भी अकेला नहीं था /
हम दोनों के साथ था
हमारा दुःख , हमारा सन्नाटा ,
हमारा बीहड़ एकांत
यही तो थे हमारे प्रेम करने के गवाह/
प्रेम में हमने इन्हें ही तो पाया था
यह जानते हुए भी कि
प्रेम अकेलेपन का ही पर्याय है
दुःख का दूसरा नाम प्रेम ही तो है
प्रेम में निरंतर अकेले हो जाना
ही तो हमारे प्रेम की उपलब्धि थी/
एकांत का बीहड़पन ही तो
हमने पाया था अपने प्रेम में
जिसमें हम ताउम्र भटकते रहे
हमने प्रेम किया था ......
प्रेम में निरंतर अकेले हो जाना
जवाब देंहटाएंही तो हमारे प्रेम की उपलब्धि थी/
एकांत का बीहड़पन ही तो
हमने पाया था अपने प्रेम में
जिसमें हम ताउम्र भटकते रहे
हमने प्रेम किया था ......
आपकी भाव-प्रवण कविता बहुत ही अच्छी लगी । मेरे पोस्ट "बिहार की स्थापना के 100 वर्ष" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
प्रेम में निरंतर अकेले हो जाना
जवाब देंहटाएंही तो हमारे प्रेम की उपलब्धि थी/
एकांत का बीहड़पन ही तो
हमने पाया था अपने प्रेम में
जिसमें हम ताउम्र भटकते रहे
हमने प्रेम किया था ......
बहुत सुंदर। मेर नए पोस्ट "अतीत से वर्तमान तक का सफर" पर आपका इंतजार रहेगा। आशा है आप निराश नही करेंगी। धन्यवाद।