मुक्ति
उसने मुझसे कहा-
मैं तुम्हें मुक्त करती हूँ
अपने रिश्तों से ,
अपनी चिंताओं से
अपने प्यार से /
सोचता हूँ
मुक्त करना
क्या सचमुच मुक्त करना होता है ?
kabhi मुक्तिबोध ने कहा था
मुक्ति कभी अकेले की नहीं होती /
इसलिए कहाँ हो पाते हैं हम मुक्त ?
हम- तुम एक दूसरे से
अलग होकर
अलग -अलग दिशाओं में
मुक्ति की तलाश करते रहे
और
एक दूसरे को मुक्त करने का
स्वांग भरते रहे /
पर जितना भी स्वांग भरे
मुक्त होना संभव नहीं है
क्योंकि
रिश्तों से, चिंताओं से , प्यार से
मुक्त होना
शायद हमारे मरने की
निशानी होगी /
उसने मुझसे कहा-
मैं तुम्हें मुक्त करती हूँ
अपने रिश्तों से ,
अपनी चिंताओं से
अपने प्यार से /
सोचता हूँ
मुक्त करना
क्या सचमुच मुक्त करना होता है ?
kabhi मुक्तिबोध ने कहा था
मुक्ति कभी अकेले की नहीं होती /
इसलिए कहाँ हो पाते हैं हम मुक्त ?
हम- तुम एक दूसरे से
अलग होकर
अलग -अलग दिशाओं में
मुक्ति की तलाश करते रहे
और
एक दूसरे को मुक्त करने का
स्वांग भरते रहे /
पर जितना भी स्वांग भरे
मुक्त होना संभव नहीं है
क्योंकि
रिश्तों से, चिंताओं से , प्यार से
मुक्त होना
शायद हमारे मरने की
निशानी होगी /
आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
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