अबकी बार घर लौटा तो देखा वह नहीं था --
वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष
जो हमेशा मिलता था घर के दरवाजे पर तैनात /
पुराने चमड़े का बना उसका शरीर
वही सख्त जान
झुरिर्योदार खुरदुरा ताना मैला कुचला ,
राइफिल - सी डाल,
एक पगड़ी फूल पत्तीदार ,
पावों में फटा पुराना जूता
चरमराता लेकिन अक्खड़ बल बूता
धुप में बारिश में
गर्मी में सर्दी में
हमेशा चौकन्ना
अपनी खाकी वर्दी में
दूर से ही ललकारता " कौन ?"
मैं जवाब देता , " दोस्त "
और पल भर को बैठ जाता
उसकी ठंडी छाव में
दरअसल शुरू से ही था हमारे अंदेशों में
कहीं एक जानी दुश्मन
कि घर को बचाना है लुटेरों से
शहर को बचाना है नादिरों से
देश को बचाना है देश के दुश्मनों से
बचाना है ----
नदियों को नाला हो जाने से
हवा को धुवां हो जाने से
खाने को जहर हो जाने से
बचाना है - जंगल को मरुथल हो जाने से
बचाना है - मनुष्य को जंगल हो जाने से /
------- कुंवर नारायण
Good sir
जवाब देंहटाएंGood sir
जवाब देंहटाएंSir 2nd para me 3rd line ka artha nhi samj aya thoda batayiye plZ
जवाब देंहटाएंयहाँ पर दरवाजे के सामने खड़े पुराने पेड़ की तुलना बूढ़े चौकीदार से करते हुए कवि कहते हैं कि पेड़ का तना झुर्रियोंदार और खुरदुरा तथा मैला कुचला सा है। जिस प्रकार बूढ़े व्यक्तियों का चमडा झुर्रियाँ पडी होती है, उनकी त्वचा जवाँ लोगों की तरह न होकर खुरदरी होती है। इसके साथ ही उसमें चमक न होकर देखने में गन्दी/ भद्दी दिखती है, उसी प्रकार इस बूढ़े पेड़ के तना भी झुर्रीदार, खुरदरा और गंदा लगता था।
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