इन अंखियों का क्या करूँ ? सखी !
जो बात -बात में पनिया जाती हैं
मनवा भी इन्हीं का साथ देता है
सुनता ही नहीं है
राह जोहता है , बाट निहारता है उनकी
जो आने वाले नहीं हैं /
कैसे समझाऊँ सखी ?
यह मनवा न जाने कहाँ हिरा जाता है ?
बीते दिनों के उजाड़ वन में
फिर थक- हार कर लौट आता है
और अँखियाँ फिर
पनिया जाती हैं सखी !
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