शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

भाषा आन्दोलन : नव राष्ट्र का जन्म - डॉ. शंकर तिवारी (५)

                             पाकिस्तानी हुकमरान  पूर्वी पाकिस्तान को न  स्वायत्तता   देना चाहते  थे और न उनकी भाषा को सरकारी स्वीकृति जिसके परिमाणस्वरुप अब यह आन्दोलन सड़क पर उतर चुका था/ इसका चरम  रूप उस दिन दिखाई पड़ा जब  ढाका विश्वविद्यालय    के छात्रों द्वारा इस आन्दोलन के समर्थन में निकाले गए जुलूस  पर  पुलिस द्वारा गोली से फायरिंग की गई / यह दिन २१ फरवरी १९५२ था / भाषा का यह आन्दोलन बंगाली जाति के आत्मसम्मान  का प्रतीक था और यह दिन जहाँ एक तरफ शोक व् दुःख का दिन था तो दूसरी तरफ बलिदान  व् गौरव का भी दिन था/ बाँग्ला भाषा के सामान के लिये चार युवक्  गोली खाकर शहीद   हो गए थे / पूरा ढाका शहर  इन चार युवकों - सलाम, बरकत, रफीक और जबबार  के  शहीदी रक्त से लाल हो गया था/ अपनी भाषा के लिये अपने जीवन  को उत्सर्ग कर देना - यकीनन गर्व का विषय था , है और रहेगा/

 अब आन्दोलन का रूख बदल चुका था सिर्फ अपनी भाषा ही बल्कि अब अपने लिये एक नए  राष्ट्र की मांग भी उठने लगी / पश्चिम पाकिस्तान के अत्याचार से मुक्त होने का समय आ चुका था/ चार भाषा प्रेमिओं  का बलिद्दन एक चिंगारी के रूप में सुलगकर क्रांति की बहुत बड़ी लौ बन चुकी थी/ अब आन्दोलन की धार को   कुंद नहीं किया जा सकता/ अंततः १९७१ में यह मुक्ति-पर्व बांग्लादेश के जन्म के साथ संपन्न हुआ/ यह विश्व  इतिहास में एक नजर विहीन  घटना थी / साथ ही बांग्लादेश का जन्म उन लोगों के लिये करारा सबक था जो यह मानकर चल रहे थे कि धर्म के आधार पर विश्व के सभी मुसलमान एक हैं, उनके सांसारिक हित-अहित एक हैं, उनकी बोलचाल, भाषा , तहजीब सब एक जैसा है/ असल में भाषा का सम्बन्ध किसी धर्म से नहीं होता है बल्कि भाषा जातीयता का प्रतीक होती है/ भाषाई अस्मिता के लिये किया गया यह आन्दोलन  विश्व के हर भाषा-प्रेमी को  सदप्रेरित करता है और यह रौशनी देता है कि जब तक  भाषाएँ  जिन्दा रहेंगी तब तक हम जिन्दा रहेंगे / 

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