समाज और भाषा का सम्बन्ध अटूट होता है तथा दोनों एक दूसरे के परिचायक भी होते हैं/ समाज के लिये भाषा की उपयोगिता को स्पष्ट करते हुए प्रेमचंद कहते हैं - " मनुष्य में मेल-मिलाप के जितने साधन हैं, उनमें सबसे मजबूत ,असर डालने वाला रिश्ता भाषा का है / राजनीतिक, व्यापारिक नाते जल्द या देर में कमजोर पड़ सकते हैं और अक्सर टूट जाते हैं लेकिन भाषा का रिश्ता समय की और दूसरी बिखेरने वाली शक्तियों की परवाह नहीं करता और एक तरह से अमर हो जाता है /" ( प्रेमचंद, साहित्य का उदेश्य , पेज न . -११९) प्रेमचंद के इस कथन को हम भाषा आन्दोलन के परिमाण स्वरुप जन्मे राष्ट्र बांग्लादेश के रूप में फलीभूत पाते हैं / भाषाई अस्मिता तथा भाषाई एकता का जीवन्त उदाहरण है - बांग्लादेश /
सन १९४७ में भारतवर्ष दो स्वतंत्र राष्ट्रों में विभक्त हो गया था / संसार के इतिहास में ऐसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता जहाँ बर्षों से एक वतन में बसने वाली जातियों की सांप्रदायिक अनुदारता से उस वतन के दो टुकड़े कर दिए गए हों / यह विभाजन धर्म को केंद्र में रख कर हुआ था / धर्म के नाम पर जो नया मुल्क बना , वह पाकिस्तान था / अब मुसलमानों के लिये पाकिस्तान बन चुका था / पर इस बंटवारे को हिन्दुस्तान का अवाम स्वीकार नहीं पाया क्योंकि हिदुस्तान की आजादी के लिये हिन्दुओं और मुसलमानों ने मिलकर कुर्बानियां दी थीं पर इसलिये नहीं दी थीं कि आजादी के बाद दंगें झेलें , एक दूसरे का गला काटें , अपने घर- बार से विस्थापित होएं / लेकिन सियासती शतरंज पर चालें चलीं जा चुकी थीं / लाखों लोगों को विभाजन के नाम पर विस्थापित होना पड़ा / तमाम विपरीत परिस्थितिओं के बावजूद बहुत सारे ऐसे घर - परिवार भी थे जिन्होनें अपनी माटी से उखाड़ना पसंद नहीं किया/ यह उनका अपनी मातृभूमि के प्रति गहरा प्रेम था/ ' जननी ज्नाम्भुमिश्ये स्वर्ग दपि गरियशी ' - में आस्था के चलते बहुत से हिन्दू पाकिस्तान में ही रह गएँ / इधर भारत में भी बहुत सारे मुसलमान बंटवारे के बाद पाकिस्तान नहीं गएँ बल्कि हिदुस्तान को ही अपना वतन माना /
भारतवर्ष में भाषा और धर्म के नाम पर असुरक्षा की भावना मुसलामानों में नहीं पनप पाई क्योंकि यहाँ की सरकारें अपने तमाम राजनैतिक प्रतिबद्धताओं के बवजूद इस बात का ध्यान रखे हुए थीं कि इस देश में किसी भी व्यक्ति को अपने धर्म और भाषा की अभिव्यक्ति का अधिकार बना रहेगा/ पर पाकिस्तान में यह बात पूरी तौर पर लागू नहीं हो पाई / वहां पर भाषा की समस्या उठ खड़ी हुई / विशेषकर पूर्वी पाकिस्तान में जहाँ पर बहुसंख्यक जनता की मातृभाषा बांगला थी पाकिस्तानी हुकूमत ने दो भाषाओँ -- उर्दू और अंग्रेजी - को राज भाषा के रूप में स्वीकृति दी थी / पूर्वी पाकिस्तान में उर्दू और अंग्रजी बोलने व् समझनेवालों की संख्या बहुत कम थी /वहां की जनता की प्रबल इच्छा थी कि उर्दू और अंग्रेजी के साथ साथ बांगला भाषा को भी सरकारी कामकाज के लिये राजभाषा के रूप में स्वीकृति मिले /
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें