शनिवार, 11 दिसंबर 2010
भ्रष्टाचार के दलदल में फंसा हिंदुस्तान
पिछले कुछ दिनों से हिंदुस्तान में भ्रष्टाचार से जुडी जो ख़बरें आ रही हैं वे अपने आप में चौकाने वाली हैं तथा विचार करने वाली भी हैं वैसे तो भ्रष्टाचार हिंदुस्तान के लिये कोई नई चीज नहीं है पर हाल ही में इसमें जिस तरीके से बढ़ोतरी हुई है वह हमें विचलित करता है यहाँ यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इसके लिये जिम्मेदार सिर्फ नेता नहीं हैं बल्कि पूरा समाज इसकी लपेट में हैं आज भारत सिर से पैर तक भ्रष्टाचार के दलदल में डूबा हुआ है इस दलदल से आम आदमी दुखी है पर क्या सिर्फ दुखी होने से भ्रष्टाचार के दलदल से भारत को मुक्ति मिल जाएगी ? क्या भारत का लोकतंत्र अपने तंत्र की लोलुपता पर सिर्फ अफसोस जताता रहेगा ? मुझे नहीं लगता कि इस तरीके से चुपचाप बैठ कर इन घटनावों पर मात्र अफ़सोस करके हमारे दायित्वा की खानापूर्ति हो जाती है हमें यदि अपने लोकतंत्र के प्रतिनिधिओ की लोलुपता पर अंकुश लगाना है तो हमें इनके खिलाफ एक सक्रिय प्रतिरोध खड़ा करना होगा बिलकुल उदयप्रकाश की कहानी " और अंत में प्रार्थना " के नायक डॉ. वाकानकर की तरह / क्या हम ऐसा नहीं कर सकते ? क्यों नहीं हम आवाज उठाते ? क्यों हमे यह जरुरी मुद्दा नहीं लगता ? क्यों हम सभी चीजो का दायित्वा मीडिया और न्यायापलिका पर छोड़ देतें हैं ? क्यों हम ऐसे नेतावों को चुनते हैं जो सत्ता मिलते ही देश और जनता की सम्पति को डा
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