कन्धों पर न जाने कितने जन्मों का बोझ उठाये
अब तक कितने मीलों की दूरी तय कर आया था
और न जाने अभी कितनी दूर जाना था मुझे /
इस यात्रा में मेरा सब कुछ .......
रेत की तरह मुट्ठी से फिसल गया था
सोचा नहीं था ..........
यात्रा पर निकलते समय मेरी आँखों में इतना पानी कहाँ से आया था
क्यूँ मन दहाड़ मारकर सुलग रहा था
क्यूँ लगा था शायद मैं फिर कभी लौट न पाउँगा ?
आज लगता है मेरी आँखों में आये पानी का दर्द क्या था
मन के सुलगने का अर्थ भी समझ पाया हूँ
आज भी मेरी यात्रा जारी है ...........
मन बोझिल- सा सब कुछ ढोए जा रहा है ...
yatra never stops.It does not know begining ,it does not know end.It knows only to continue the journey in the shadow of allegations.Thanks.
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